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सितम्बर माह के व्रत और त्यौहार |

सितम्बर माह के व्रत और त्यौहार |

हर हर महादेव!!
मैं आप सबको और आप सब के हृदय में विराजमान ईश्वर के प्रणाम करता हूं और धन्यवाद करता हूं। अंग्रेजी कैलेंडर का सितंबर महीना हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद और आश्विन माह का संयुक्त महीना होता है। इस वर्ष ईस्वी सन् 2024 में भाद्रपद मास 20 अगस्त से आरंभ हुआ था जो 18 सितंबर 2024 तक रहेगा। 19 सितंबर 2024 से अश्विन माह आरंभ हो जाएगा।

भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष में परमपिता परमेश्वर भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है। भाद्रपद शुक्ल पक्ष में वरद् विनायक विघ्नहर्ता भगवान श्री गणेश जी का विशेष त्यौहार श्री गणेश दशहरा पूरे विश्व में धूमधाम से मनाया जाता है।आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में पितरों की विशेष पूजा की जाती है और शुक्ल पक्ष में जगत जननी मां जगदंबा मां दुर्गा की विशेष पूजा नवरात्रि के रूप में की जाती है। इस वर्ष विक्रम संवत 2081 का भाद्रपद मास पूरे 30 दिनों का है।

भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष में तीन बुधवार बहुत ही महत्वपूर्ण और शुभ फलदायक हैं।आयुर्वेद के नियमों के अनुसार भाद्रपद मास में दही का सेवन नहीं किया जाता है।

भाद्रपद मास भाद्रपद मास और भाद्रपद मास के अधिपति देवी देवताओं को, भगवान श्री कृष्ण, भगवान श्री गणेश, मां जगदंबा, मां दुर्गा और सभी पितरों को नमन करते हुए और इन सभी के आशीर्वाद से आइए चर्चा करते हैं सितंबर 2024 के कुछ महत्वपूर्ण व्रत और त्योहारों के बारे में।

1 सितंबर रविवार को मासिक शिवरात्रि का व्रत होगा।

2 सितंबर सोमवार को स्नान दान श्रद्धा की अमावस्या होगी। जिसे पिठौरी अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है। सोमवार के दिन अमावस्या तिथि पड़ने के कारण इसे सोमवती अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है। सुहागन स्त्रियां अपने पति के सौभाग्य के लिए सोमवती अमावस्या का व्रत रखती हैं और पीपल वृक्ष की परिक्रमा करके पूजा करती हैं। आज की अमावस्या को कुशोत्पाटिनी अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है। आज के दिन की अमावस्या का विशेष महत्व है। आज के दिन ॐ हूं फट्कार इस मंत्र से कुश ग्रहण करने का विधान है। आज के दिन उखाड़े गए कुश को वर्ष भर पूजा पाठ, कर्मकांड में प्रयोग में लाया जाता है। प्रत्येक व्यक्ति को चाहिए कि आज के दिन या तो खेतों में से कुश उखाड़ कर लाएं अथवा कुश खरीद कर रख लें। जिसे पूरे वर्ष भर पूजा पाठ इत्यादि में प्रयोग करें।

3 सितंबर मंगलवार को अमावस्या तिथि में सूर्योदय होने के कारण स्नान दान की अमावस्या होगी। इसे भौमावती अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है।

4 सितंबर बुधवार को चंद्र दर्शन है।

5 सितंबर गुरुवार को पूरे भारतवर्ष में सभी शिक्षण संस्थानों में शिक्षक दिवस मनाया जाएगा। आज के दिन भारतवर्ष के भूतपूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली डॉक्टर राधाकृष्णन के जन्म दिवस पर उनके सम्मान में शिक्षक दिवस मनाया जाता है।

6 सितंबर शुक्रवार को श्री हरि विष्णु के अवतार वाराह भगवान का जन्मोत्सव दोपहर के समय श्रद्धा भक्ति के साथ मनाया जाएगा। इसे वाराह जयंती के रूप में भी जाना जाता है।

आज के दिन हरितालिका तीज का व्रत भी होगा। उड़ीसा प्रांत में इसे गौरी तृतीया के नाम से जाना जाता है। सौभाग्यवती महिलाएं अपने सौभाग्य को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए और कुमारी कन्याएं भावी जीवन में सुखी दांपत्य जीवन की कामना से, मनवांछित जीवनसाथी अर्थात् पति को प्राप्त करने के लिए इस व्रत को तपस्या की तरह निर्जला निराहार रहकर पूर्ण करती हैं। इस वर्ष 2024 ईस्वी में 6 सितंबर को तृतीया तिथि दिन में 3:01 तक होने के कारण तिथि समाप्ति के पूर्व ही महादेव और माता गौरी की पूजा कर लेना चाहिए।

आज ही चंद्रोदय व्यापिनी चतुर्थी तिथि के कारण ढेलहिया चौथ एवं चंद्र पूजा का मन होगा। आज के दिन के चंद्रमा का दर्शन निषिद्ध माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि आज के दिन चंद्रमा के दर्शन करने से जीवन में कलंक लगता है। यदि भूल वश आज के चंद्रमा का दर्शन हो जाए तो भगवान श्री कृष्णा के स्मयन्तक मणि की कथा सुन लेने से इस दोष की शांति हो जाती है।

7 सितंबर शनिवार को वैनायकी वरद् श्री गणेश चतुर्थी का व्रत होगा। आज से 10 दिनों तक चलने वाला श्री गणेश दशहरा का उत्सव प्रारंभ होगा। भगवान श्री गणेश का यह वार्षिक उत्सव वैसे तो पूरे संसार में मनाया जाता है। किंतु भारतवर्ष में से विशेष धूमधाम से मनाया जाता है। भारतवर्ष में विशेष रूप से महाराष्ट्र प्रांत में भगवान श्री गणेश की पूजा अत्यधिक धूमधाम से विशेष रंगारंग कार्यक्रमों के साथ मनाया जाता है।

विश्व भर में सर्व प्रसिद्ध मुंबई के लाल बाग के राजा का दर्शन करना अत्यंत सौभाग्य दायक माना जाता है। लाल बाग के राजा गणपति मनोकामना पूर्ति के लिए विशेष रूप से जाने जाते हैं।

8 सितंबर रविवार को श्री ऋषि पंचमी का व्रत होगा। दोपहर के समय सप्त ऋषियों का पूजन करके उनकी विशेष पूजा की जाएगी। इसे बंगाल में रक्षा पंचमी के नाम से जाना जाता है। जैन समुदाय से सांवत्सरी पंचमी के रूप में मनाता है। उड़ीसा प्रांत में गुरु पंचमी के रूप में इस त्यौहार को मनाया जाता है।

किसी कारणवश यदि रक्षाबंधन के दिन रक्षा सूत्र अथवा राखी ना बांध सके हों तो आज के दिन बहनें अपने भाई की कलाई पर रखी अथवा रक्षा सूत्र बांधती हैं।

9 सितंबर सोमवार को लोलार्क षष्ठी व्रत है।

10 सितंबर मंगलवार को ललिता सप्तमी है।

11 सितंबर बुधवार को श्री राधा अष्टमी का व्रत होगा। वृंदावन में राधा रानी का महा अभिषेक किया जाता है। आज के ही दिन राधा रानी का जन्म हुआ था।

आज से माता महालक्ष्मी का व्रत पूजा आरंभ होगा।

12 सितंबर गुरुवार को श्री चंद्र नवमी होगा।

14 सितंबर शनिवार को पद्मा एकादशी का व्रत गृहस्थ और वैष्णव दोनों के लिए सर्वमान्य होगा।

इस एकादशी को बिहार और झारखंड प्रांत में कर्मा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। मध्य प्रदेश में इसे डोल ग्यारस के नाम से जाना जाता है। केरल प्रांत में इसे ओणम के नाम से जाना जाता है।

आज हिंदी दिवस है आज के दिन सभी हिंदुस्तानी हिंदी भाषा में कामकाज करने की प्रतिज्ञा करते हैं।

हिंदी भाषा के सम्मान में अलग-अलग स्थानों पर हिंदी दिवस का उत्सव मनाया जाता है।


15 सितंबर रविवार को प्रदोष व्रत होगा। एकादशी व्रत का पारण दिन में 10:00 बजे के अंदर किया जाएगा। आज भगवान विष्णु के अवतार वामन भगवान का जन्मोत्सव भी दोपहर में श्रद्धा भक्ति पूर्वक मनाया जाएगा। इसे वामन द्वादशी अथवा वामन जयंती के रूप में भी जाना जाता है।

17 सितंबर मंगलवार को व्रत की पूर्णिमा होगी। आज श्री हरि विष्णु के अनंत स्वरूप में श्री अनंत चतुर्दशी का व्रत और पूजन भी होगा। दोपहर के समय अनंत भगवान की पूजा और कथा श्रवण किया जाता है और उसके पश्चात् अनंत का डोरा पुरुष अपने दाहिनी भुजा पर और स्त्रियां अपने बाई भुजा पर धारण करती हैं।

पिछले 10 दिनों से चला आ रहा गणेश दशहरा का आज समापन हो जाएगा। घरों से लेकर पंडालों तक के श्री गणेश जी की सभी मूर्तियों का विसर्जन कर दिया जाएगा।

आज देव शिल्पी भगवान श्री विश्वकर्मा जी का भी जन्मोत्सव मनाया जाएगा।

18 सितंबर बुधवार को स्नान दान की भाद्रपद पूर्णिमा होगी। आज से महालय आरंभ हो जाएगा। अर्थात् आज से श्राद्ध पक्ष आरंभ हो जाएगा। अर्थात पितृपक्ष आरंभ हो जाएगा।

19 सितंबर गुरुवार से आश्विन माह प्रारंभ हो जाएगा।

21 सितंबर शनिवार को संकष्टी श्री गणेश चतुर्थी का व्रत होगा।

24 सितंबर मंगलवार को महालक्ष्मी व्रत का समापन हो जाएगा।

25 सितंबर बुधवार को जीवित्पुत्रिका व्रत होगा। आज के दिन सभी माताएं अपने पुत्र की दीर्घायु की कामना से निर्जला व्रत रखती हैं और सायं काल में राजा जीमूतवाहन और मां दुर्गा की विशेष पूजा अर्चना करती हैं। जीवित्पुत्रिका व्रत का नियम यह है की सप्तमी रहित अष्टमी का व्रत किया जाता है। अन्यथा सप्तमी युक्त अष्टमी व्रत करने से बेहद कष्ट प्राप्त होता है। हालांकि 24 सितंबर मंगलवार की दोपहर 12:38 से अष्टमी तिथि प्रारंभ हो जाएगा। किंतु सप्तमी युक्त अष्टमी तिथि होने के कारण 24 सितंबर मंगलवार को व्रत नहीं किया जाएगा और व्रत से संबंधित किसी भी नियम का पालन नहीं किया जाएगा। 25 सितंबर को दोपहर 12:10 पर ही अष्टमी तिथि समाप्त होकर नवमी तिथि प्रारंभ हो जाएगी। फिर भी यही व्रत करना उचित माना जाएगा। क्योंकि शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार अष्टमी युक्त नवमी का व्रत अत्यंत शुभ फल प्रदायक माना जाता है। अतः आज के दिन ही दोपहर 12:00 बजे से पूर्व मां जगदंबा और राजा जीमूतवाहन की पूजा अर्चना कर लेना श्रेष्ठ होगा।

26 सितंबर गुरुवार को प्रातः काल सूर्योदय के पश्चात् एक घंटा के अंदर जीवित्पुत्रिका व्रत का परण कर लेना चाहिए।

28 सितंबर शनिवार को इंदिरा एकादशी का व्रत गृहस्थ और वैष्णव दोनों के लिए सर्वमान्य होगा।

30 सितंबर सोमवार को सोम प्रदोष व्रत होगा। आज मासिक शिवरात्रि का व्रत भी होगा।

विशेष टिप्पणी:

31 अगस्त शनिवार की सुबह 6:45 पर भगवान सूर्य पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में प्रवेश करेंगे। जिसके कारण अच्छी बरसात होने के योग हैं। अमावस्या तिथि की वृद्धि हो जाने से भौमवती अमावस्या का भी योग बन गया है। इसमें गंगा स्नान का अत्यंत श्रेष्ठ पुण्य फल माना गया है।

13 सितंबर शुक्रवार की रात 12:44 पर भगवान सूर्य उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में प्रवेश करेंगे। इसमें सामान्य से अधिक वर्षा होने के योग मिल रहे हैं। 17 सितंबर मंगलवार के दिन 11:17 पर भगवान सूर्य कन्या राशि में प्रवेश करेंगे। जिसके कारण फल और सब्जियां महंगी हो जाएंगी।

18 सितंबर के आसपास वर्षा होने के योग मिल रहे हैं।

27 सितंबर शुक्रवार के दिन में 4:10 पर भगवान सूर्य हस्त नक्षत्र में प्रवेश कर जाएंगे। जिसके कारण तेज हवा के साथ सामान्य वर्षा होने के योग मिल रहे हैं। अमावस्या तिथि को चतुर्ग्रही योग देश और समाज में उपद्रव कराएगा। समुद्री तूफान इत्यादि की संभावना बन सकती है।

जीवन उपयोगी कुछ महत्वपूर्ण बातें

आम तौर पर हम अपने रोजमर्रा की जिंदगी में कुछ ऐसी छोटी-छोटी गलतियां करते रहते हैं जिनके कारण जाने अनजाने हमें कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है और हम समझ नहीं पाते कि हमारे साथ ऐसा क्यों हो रहा है? यही कारण है कि प्राचीन काल में गुरुओं का बड़ा सम्मान होता था। प्रत्येक व्यक्ति गुरुओं के संपर्क में होता था। प्रत्येक व्यक्ति का कोई न कोई गुरु आवश्य होता था। जिससे अपने जीवन की प्रत्येक समस्याओं के बारे में विचार विमर्श किया करते थे। किंतु जैसे-जैसे हम आधुनिकता की तरफ बढ़ते गए कहीं ना कहीं गुरु परंपरा छुटती चली गई और हम अपने जीवन की समस्याओं से स्वयं ही दो-चार होते रहते हैं। आज के परिवेश में बहुत कम ऐसे ज्ञानी व्यक्ति या गुरु रह गए हैं जो हमें सही मार्गदर्शन दे सकें। उससे कहीं ज्यादा प्रत्येक मनुष्य में स्वयं अधिक विद्वान होने का भ्रम इतना प्रबल हो गया है कि वह किसी से भी कोई सलाह मशवरा नहीं करना चाहता। किंतु जब परेशानियां हद से ज्यादा बढ़ जाती हैं तब हम किसी विद्वान व्यक्ति की तलाश में होते हैं जो हमें इन परेशानियों से बाहर निकलने का रास्ता बता सके। परेशानियों से बचने के कई रास्ते निकल आते हैं कई समाधान मिल जाते हैं। किंतु कितना अच्छा हो कि हम अपने दिनचर्या को थोड़ा व्यवस्थित कर लें। जिससे हमसे जाने अनजाने कम से कम गलती हो। जिसके कारण हमें किसी प्रकार की हानि या कष्ट ना उठाना पड़े।

1. आमतौर पर हम में से प्रत्येक व्यक्ति प्रतिदिन अथवा सप्ताह में एक दिन अथवा महीने में एक दिन किसी ने किसी भगवान के मंदिर में दर्शन करने अवश्य जाते हैं। मंदिर में प्रवेश करते ही हम घंटा बजाते हैं और घंटे की ध्वनि के साथ भगवान के दर्शन करते हैं। इसका वैज्ञानिक कारण यह होता है पीतल के घंटे की ध्वनि जब हमारे सर से लेकर पैर तक कंपन करती हुई पहुंचती है तो उससे हमारे शरीर के कई विषाणु नष्ट हो जाते हैं। अतः घंटा बजाते हुए हमें ठीक घंटे के नीचे खड़े होना चाहिए और जब तक उसकी ध्वनि गूंज रही हो हमें वहां रुकना चाहिए। यहां तक तो सही है। किंतु गलती तब होती है जब हम मंदिर से लौटते समय वापस घंटा बजा देते हैं। ध्यान रहे मंदिर से वापस लौटते समय घंटा नहीं बजना चाहिए। जैसे हम किसी के घर पर जाते हैं तो सीधे उसके घर में प्रवेश नहीं कर जाते। बल्कि दरवाजे पर लगे कॉल बेल बजाते हैं और जब दरवाजा खुलता है कोई व्यक्ति सामने आता है तब हम उससे आज्ञा लेकर उसके घर में प्रवेश करते हैं। वैसे ही जब हम भगवान के मंदिर में जाते हैं तो हम भी घंटा बजाकर भगवान से अनुमति मांगते हैं कि हम उनके दर्शन कर सकें। किंतु कभी भी हम किसी व्यक्ति के घर से वापस जाते समय पुनः कॉल बेल नहीं बजाते। वैसे ही जब हम भगवान के दर्शन करके वापस जाने लगते हैं तो हमें घंटा नहीं बजाना चाहिए। इससे दैवी प्रतिमा रुष्ट होती है और हमारे जीवन में कष्ट आने लगते हैं।

2. घर में पूजा करने के बाद अथवा मंदिर में पूजा होने के बाद आरती जरूर होती है। आरती हो जाने के बाद हम सब बड़े प्रेम से आरती की ताप अपने हथेलियों पर लेकर अपने चेहरे पर लगाते हैं। अर्थात् आरती लेते हैं। किंतु आरती लेने के बाद हम जल का स्पर्श नहीं करते। यह एक बहुत बड़ी गलती हो जाती है। ध्यान रहे चाहे घर में हम आरती ले रहे हो या मंदिर में आरती ले रहे हो, आरती ग्रहण करने के पश्चात् हमें अपने हाथों पर जल के छीटें लेकर जल का स्पर्श कर लेना चाहिए। क्योंकि अग्नि यदि भड़कती रहे तो जीवन में संघर्ष बढ़ने लगता है। ताप बढ़ने लगता है। इसीलिए अग्नि को शांत करने के लिए हाथ पर जल के छीटें लगाते हैं। पुराने जमाने में जब लकड़ी के चूल्हे जलाए जाते थे तो भोजन बनाने के पश्चात् चूल्हे की लकड़ी को बाहर निकाल कर उस पर जल के छीटें लगा दिए जाते थे। जिससे अग्नि शांत हो जाए। वैसे ही हवन यज्ञ करने के बाद भी चारों तरफ से जल का सिंचन करके अग्नि को शांत होने की प्रार्थना करते हैं। यहां तक कि हम यदि भगवान की आरती करते हैं तो आरती करने के बाद हम आरती के चारों तरफ से जल का सिंचन करके शांति पाठ करते हैं। उसी प्रकार यदि हम स्वयं आरती ग्रहण कर रहे हैं तो आरती ग्रहण करने के बाद हमें भी अपनी हथेलियों पर जल के छीटें अवश्य लगा लेना चाहिए।

3. मंदिरों में भगवान के दर्शन करने के बाद लगभग सभी व्यक्ति परिक्रमा आवश्यक लगाते हैं और परिक्रमा करते समय मंदिर के पीछे वाले हिस्से पर अपना सिर टिकाकर हाथों से स्पर्श करके भी प्रार्थना करते हैं।

परिक्रमा करते समय मंदिर के पीछे वाले हिस्से को भी हाथों से स्पर्श करके प्रणाम करते हैं। ऐसा करना बेहद खतरनाक होता है। कभी भी किसी भी देवी देवता के मंदिर के पीछे वाले हिस्से को परिक्रमा करते समय बिल्कुल स्पर्श नहीं करना चाहिए। क्योंकि ऐसा करने से सारे पुण्य नष्ट हो जाते हैं और व्यक्ति के जीवन में दुख, परेशानियां, कष्ट, कर्ज और बीमारियां आने लगती है। इसका कारण यह है कि किसी भी देवी देवता की दृष्टि में अमृत होती है। यदि हम किसी देवी देवता की प्रतिमा के सामने खड़े होते हैं , हम पर जब उनकी दृष्टि पड़ती है तो उनकी अमृत दृष्टि के कारण हमारे जीवन के सारे कष्ट समाप्त हो जाते हैं। किंतु जैसे ही हम मंदिर के पीछे वाले हिस्से को स्पर्श करते हैं, हमारे सारे पुण्य, हमारे सारे शुभ फल समाप्त हो जाते हैं। क्योंकि शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार किसी भी देवी देवता के पीठ का दर्शन नहीं करना चाहिए। पीठ का स्पर्श नहीं करना चाहिए। क्योंकि जिस तरह देवी देवताओं की दृष्टि में अमृत होती है वैसे ही उनकी पीठ पर दरिद्रता का निवास होता है। जिसके कारण जीवन में कष्ट और परेशानियां आने लगती है। ध्यान रहे कभी भी मंदिर में परिक्रमा करते समय मंदिर के पीछे वाली दीवाल का स्पर्श बिल्कुल नहीं करना चाहिए।

4. आमतौर पर पीपल के वृक्ष में जल सिंचन करना अत्यंत शुभ फलदायक माना जाता है। इससे शनि से संबंधित पीड़ा शांत होती है। किंतु ऐसा सिर्फ शनिवार को करना ही उचित होता है। प्रतिदिन पीपल के पेड़ को जल से सींचना शुभ नहीं माना जाता। क्योंकि पीपल पर देवी देवताओं के साथ-साथ प्रेतात्माओं का भी वास होता है। अतः एकमात्र शनिवार के दिन ही पीपल वृक्ष में जल अर्पित करना चाहिए। पीपल में जल अर्पित करने का सर्वश्रेष्ठ समय होता है सूर्योदय से 2 घंटे पूर्व अथवा सूर्योदय होने से पहले तक। सूर्योदय होने के बाद पीपल वृक्ष का ना तो स्पर्श करना चाहिए और ना ही उसमें जल अर्पित करना चाहिए। जो लोग प्रतिदिन पीपल वृक्ष में जल डालते हैं उनके जीवन से कभी भी रोग, व्याधि, क़र्ज़, दुश्मनी और परेशानियां समाप्त नहीं होती। विशेष रूप से रविवार के दिन पीपल वृक्ष का स्पर्श नहीं करना चाहिए। क्योंकि शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार रविवार के दिन दरिद्रता देवी का पीपल वृक्ष पर निवास होता है। भगवान विष्णु के वरदान के अनुसार यदि कोई व्यक्ति रविवार के दिन पीपल वृक्ष का स्पर्श कर ले तो दरिद्रता देवी उस व्यक्ति के साथ उसके घर में प्रवेश कर जाती हैं। उसके जीवन में प्रवेश कर जाती हैं। फिर कई तरह की दुखद स्थिति जीवन में पैदा हो जाती है। अतः रविवार के दिन पीपल वृक्ष का स्पर्श बिल्कुल नहीं करना चाहिए और सप्ताह में सिर्फ एक दिन शनिवार के दिन पीपल वृक्ष में सूर्योदय से पहले जल चढ़ाना चाहिए और सूर्यास्त के बाद दीपक जलाना चाहिए।

विशेष तिथि के अनुसार सोमवती अमावस्या के दिन पीपल वृक्ष की पूजा की जा सकती है। इसमें कोई दोष नहीं लगता।

5. व्यापारी हों या नौकरी पेशा प्रत्येक व्यक्ति को अपने रोजगार के लिए प्रतिदिन घर से बाहर जाना ही पड़ता है। लगभग पूरा दिन व्यापार, रोजगार अथवा नौकरी, सेवा इत्यादि करने के बाद रात्रि में घर वापस आते हैं। ध्यान रहे घर वापस आते समय कभी भी खाली हाथ नहीं आना चाहिए। प्रतिदिन हमें कुछ ना कुछ हाथ में लेकर ही घर में प्रवेश करना चाहिए। विशेष रूप से खाने पीने की वस्तु अथवा लंबे समय तक चलने वाली कोई भी वस्तु घर में लेकर प्रवेश करना चाहिए। यदि घर में छोटे बच्चे हों तो उनके लिए चॉकलेट, मिठाई, बिस्कुट या खिलौने लेकर प्रवेश करना चाहिए। खाली हाथ घर में आने से देखा जाता है कि घर में खालीपन आने लगता है। पैसे की तंगी आने लगती है। आर्थिक समस्याएं पैदा होने लगती हैं। इसीलिए घर वापस आते समय कुछ ना कुछ हाथ में लेकर चाहे वह सब्जी हो, चाहे कोई फल हो, मिठाई हो, चॉकलेट हो कुछ ना कुछ हाथ में अवश्य लेकर ही घर में प्रवेश करना चाहिए। इससे घर में स्थाई लक्ष्मी का निवास होता है। 
लेखक रवि शेखर सिन्हा “आचार्य मनमोहन” जी ज्योतिष मार्तंड एवं जन्म कुंडली के विशेषज्ञ है ।
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