किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार
प्रेम का प्राणी कहलाता यह मानव ,जब एक दिल को होता दूजे से प्यार ।
समय पाकर तब ऑंखें चार हैं होतीं ,
किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार ।।
दोनों दिल ही एक दूजे के हो जाते ,
अपने दिल पर न अपना अख्तियार ।
दोनों देखते दोनों को ही वे अपलक ,
जैसे चाॅंद देखे चाॅंदनी को नैन निहार ।।
ऑंखें मिलाकर दो दिल एक जब होते ,
दोनों करते प्रेम का आपस में इजहार ।
तेरे बिन तो अब मैं सदा ही अधूरा ,
दोनों दिल करते एक दूजे को स्वीकार ।।
तुम्हीं तो हो अब मेरी नई ये दुनिया ,
काट नहीं सकता इसे कोई पैनी धार ।
विख्यात होगा यह मुहब्बत धरा पर ,
ईश्वर हमारी रक्षा करेंगे आखिरकार ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )बिहार ।
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