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मुस्कुराती रहे मेरी हिन्दी जग में चँहुओर

मुस्कुराती रहे मेरी हिन्दी जग में चँहुओर

अरविन्द अकेला
आज दिवस है जन गण मन की हिन्दी का,
मिलकर बढ़ायें सब हिन्दी का मान,
मुस्कुराती रहे मेरी हिन्दी चहुँओर ,
बढ़े जग में हिन्दी की शान।
मुस्कुराती रहे मेरी हिन्दी...।


सुर,तुलसी,कबीर,खुसरो की यह भाषा,
रहीम,रसखान,जायसी की यह आशा
लाल,बाल,पाल ने डाले इसमें प्राण,
हिन्दी से हो पूरे जग कल्याण।
मुस्कुराती रहे मेरी हिन्दी ...।


गाँधी,राजेन्द्र,पटेल,रेणु ने सींचा इसको,
विवेकानंद,अटल,रफी ने फुंके इसमें प्राण,
महादेवी,शिवपूजन,निराला ने दी आहुति,
दिनकर,पंत,नेपाली,लता के बसते थे इसमें प्राण।
मुस्कुराती रहे मेरी हिन्दी...।


अज्ञेय,दुष्यंत,शुक्ल ने इसे दी ऊँचाई
नागार्जुन,जयशंकर ने दिया अपना योगदान,
भारतेंदु,शंकर,काम ने किया इसमें जीवन समर्पित,
आनंद,हसरत,समीर बने हिन्दी से महान।
मुस्कुराती रहे मेरी हिन्दी...।


प्रेमचंद,द्विवेदी,बेनीपुरी की इसमें है आन,
नीरज,प्रदीप,गुलजार ने दिया इसे सम्मान ,
मीरा,सरोजिनी ने की हिन्दी की सेवा,
कवि"अकेला"को है अपने हिन्दी पर अभिमान।
मुस्कुराती रहे मेरी...।
-------0----- अरविन्द अकेला,
पूर्वी रामकृष्ण नगर,
पटना-27
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