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दोहरा चरित्र

दोहरा चरित्र

सुरेन्द्र कुमार रंजन

एक विधवा को मिला दूसरी विधवा का साथ,
अपनी गलती से ही अपने बच्चों को किया अनाथ।
पहली विधवा बड़ी ही भली और संस्कारी थी,
पर दूसरी कुकर्मी, घमंडी और कुसंस्कारी थी।
आपसी मिलन होते ही पहली भी भटक गई,
बनी बनाई इज्जत को मिट्टी में मिला गई।
क्रूरता का रंग उस पर कुछ ऐसी चढ़ गई,
कि अपने ही करीबियों से तकरार बढ़ गई।
दूसरी के रंग में इस कदर वह रंग गई,
कि अपने ही सहकर्मियों से उसकी ठन गई।
स्वार्थ की खातिर इस कदर वो गिर गई,
 कि चरित्र को भी वो दांव पर लगा गई।
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