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तीज व्रत कैसे किया जाता है, हरतालिका तीज व्रत क्या है इसके नियम, मुहूर्त एवं तीज व्रत की पूजा विधि

तीज व्रत कैसे किया जाता है, हरतालिका तीज व्रत क्या है इसके नियम, मुहूर्त एवं तीज व्रत की पूजा विधि

पं. प्रेम सागर पाण्डेय
भारत में हरितालिका तीज एक ऐसा त्यौहार है जिसे महिलाएं रखती हैं | यह व्रत निर्जला व्रत होता है | आइए जानते हैं कि 2024 में हरतालिका तीज कब है एवं हरतालिका तीज 2024 की तारीख व मुहूर्त क्या है । हरतालिका तीज व्रत हिंदू धर्म में मनाये जाने वाला एक प्रमुख व्रत है। भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हरतालिका तीज मनाई जाती है। दरअसल भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को हस्त नक्षत्र में भगवान शिव और माता पार्वती के पूजन का विशेष महत्व है। हरतालिका तीज व्रत कुमारी और सौभाग्यवती स्त्रियां करती हैं। हरतालिका तीज व्रत निराहार और निर्जला किया जाता है। मान्यता है कि इस व्रत को सबसे पहले माता पार्वती ने भगवान शंकर को प्रसन्न कर उन्हें अपने पति के रूप में पाने के लिए किया था। हरतालिका तीज व्रत करने से महिलाओं को सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

पूजा का शुभ मुहूर्त:-


इस साल हरतालिका तीज का व्रत 6 सितंबर को रखा जाएगा। तृतीया तिथि का आरंभ 5 सितंबर की दोपहर में 12 बजकर 22 मिनट पर होगा और अगले दिन यानी 6 सितंबर को सुबह 3 बजकर 1 मिनट तक रहेगी। तृतीया तिथि उदयकाल में 6 सितंबर को रहेगी ऐसे में हरितालिका तीज का व्रत 6 सितंबर को रखा जाएगा।

कैसे किया जाता है यह व्रत-


सुहागिन महिलाएं तीज की तैयारी कई दिन पहले से शुरू कर देती हैं. वे साड़ी- कपड़े और ऋंगार के सामान बाजार से खरीदकर लाती हैं. उपवास के एक दिन पहले पारंपरिक पकवान ( खीर,पुआ-पुरी, गुजिया आदि) तैयार करती हैं. फिर तीज की पूर्व रात्रि उसका सेवन कर उपवास का व्रत आरंभ करती हैं, जिसे सरगही खाना कहते हैं. व्रत के दिन बिना अन्न-जल ग्रहण किये महिलाएं शाम में संजती-संवरती हैं, मेंहदी रचाती हैं और फिर शिव-पार्वती की पूरे मनोयोग से पूजा करती हैं. सुहाग और सौभाग्य से जुड़ा होनेके चलते महिलाएं ऋंगार और सौन्दर्य प्रसाधनों को शिव-पार्वती को समर्पित करती हैं और फिर उसे धारण करती हैं, या फिर प्रसाद के तौर पर बांट देती हैं. अधिकांश महिलाएं मंदिर जाकर शिव-पार्वती के विग्रहों की पूजा करती हैं. व्रती महिलाएं भगवान से प्रार्थना करती हैं कि उनका सुहाग अखंड रहे और जीवन पर्यन्त वे इस व्रत का अनुष्ठान करती रहें. हरतालिका तीज हमेशा हरियाली तीज और कजरी तीज के बाद मनायी जाती है.

हरतालिका तीज के दिन सुबह स्नान आदि के बाद भगवान शिव माता पार्वती और गणेश जी की मिट्टी से प्रतिमा बनाएं।

इसके बाद सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा करें। उन्हें तिलक लगाएं और दूर्वा अर्पित करें। फिर भगवान शिव को बेलपत्र और माता पार्वती को श्रृंगार का सामान अर्पित करें।

हरतालिका तीज की परंपरा-


हरतालिका तीज व्रत का प्रचलन अति प्राचीन काल से है. कब और कहां से इसका प्रारंभ हुआ, इस बारे में विशेष विवरण नहीं मिलता. लेकिन व्रत का संबंध भगवान शिव औऱ माता पार्वती से है, ऐसा सब मानते हैं. मान्यता है कि भगवान शिव को पति रुप में पाने के लिए सबसे पहले माता पार्वती ने हरतालिका तीज व्रत का अनुष्ठान किया था. कुछ लोग इसे शिव-पार्वती के पुनर्मिलन और कुछ लोग इसे शिव को अमरता प्रदान कराने वाले व्रत के तौर पर भी मानते हैं.

हरतालिका तीज व्रत के नियम:-


· हरतालिका तीज व्रत में जल ग्रहण नहीं किया जाता है। व्रत के बाद अगले दिन जल ग्रहण करने का विधान है।

· हरतालिका तीज व्रत करने पर इसे छोड़ा नहीं जाता है। प्रत्येक वर्ष इस व्रत को विधि-विधान से करना चाहिए।

· हरतालिका तीज व्रत के दिन रात्रि जागरण किया जाता है। रात में भजन-कीर्तन करना चाहिए।

· हर तालिका तीज व्रत कुंवारी कन्या, सौभाग्यवती स्त्रियां करती हैं। शास्त्रों में विधवा महिलाओं को भी यह व्रत रखने की आज्ञा है।

हरतालिका तीज व्रत पूजा विधि


हरतालिका तीज पर माता पार्वती और भगवान शंकर की विधि-विधान से पूजा की जाती है। इस व्रत की पूजा विधि इस प्रकार है..

1. हरतालिका तीज प्रदोषकाल में किया जाता है। सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्त को प्रदोषकाल कहा जाता है। यह दिन और रात के मिलन का समय होता है।

2. हरतालिका पूजन के लिए भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश की बालू रेत व काली मिट्टी की प्रतिमा हाथों से बनाएं।

3. पूजा स्थल को फूलों से सजाकर एक चौकी रखें और उस चौकी पर केले के पत्ते रखकर भगवान शंकर, माता पार्वती और भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करें।

4. इसके बाद देवताओं का आह्वान करते हुए भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश का षोडशोपचार पूजन करें।

5. सुहाग की पिटारी में सुहाग की सारी वस्तु रखकर माता पार्वती को चढ़ाना इस व्रत की मुख्य परंपरा है।

6. इसमें शिव जी को धोती और अंगोछा चढ़ाया जाता है। यह सुहाग सामग्री सास के चरण स्पर्श करने के बाद ब्राह्मणी और ब्राह्मण को दान देना चाहिए।

7. इस प्रकार पूजन के बाद कथा सुनें और रात्रि जागरण करें। आरती के बाद सुबह माता पार्वती को सिंदूर चढ़ाएं व ककड़ी-हलवे का भोग लगाकर व्रत खोलें।

हरतालिका तीज व्रत का पौराणिक महत्व

हरतालिका तीज व्रत भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। एक पौराणिक कथा के अनुसार माता पार्वती ने भगवान भोलेनाथ को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था। हिमालय पर गंगा नदी के तट पर माता पार्वती ने भूखे-प्यासे रहकर तपस्या की। माता पार्वती की यह स्थिति देखकप उनके पिता हिमालय बेहद दुखी हुए। एक दिन महर्षि नारद भगवान विष्णु की ओर से पार्वती जी के विवाह का प्रस्ताव लेकर आए लेकिन जब माता पार्वती को इस बात का पता चला तो, वे विलाप करने लगी। एक सखी के पूछने पर उन्होंने बताया कि, वे भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तप कर रही हैं। इसके बाद अपनी सखी की सलाह पर माता पार्वती वन में चली गई और भगवान शिव की आराधना में लीन हो गई। इस दौरान भाद्रपद में शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन हस्त नक्षत्र में माता पार्वती ने रेत से शिवलिंग का निर्माण किया और भोलेनाथ की आराधना में मग्न होकर रात्रि जागरण किया। माता पार्वती के कठोर तप को देखकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और पार्वती जी की इच्छानुसार उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार किया।
तभी से अच्छे पति की कामना और पति की दीर्घायु के लिए कुंवारी कन्या और सौभाग्यवती स्त्रियां हरतालिका तीज का व्रत रखती हैं और भगवान शिव व माता पार्वती की पूजा-अर्चना कर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं।
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