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पुनर्जन्म हिन्द में पाऊॅं

पुनर्जन्म हिन्द में पाऊॅं

हिन्दी हमारी प्यारी भाषा ,
हिन्दी गुण सदा ही गाऊॅं ।
हिन्द में पलना खाना रहना ,
हिन्दी आभार तेरा जताऊॅं ।।
हिन्दी से सुसंस्कृत हुए हैं ,
हिन्दी सदा तुझे अपनाऊॅं ।
सभ्य शिष्ट निष्ठ भी तुम हो ,
तुम्हें तज कहाॅं पे मैं जाऊॅं ।।
तुमसे ही मानवता है आया ,
तेरे कारण सबको भाऊॅं ।
जन जन का बना हूॅं प्यारा ,
तेरे कारण सम्मान पाऊॅं ।।
हिन्दी तुझपे मैं बलिहारी ,
जन जन नैन बस जाऊॅं ।
जन्म जन्म ये साथ हमारा ,
पुनर्जन्म मैं हिन्द में पाऊॅं ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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