मुस्कुराता रहा बस यही सोचकर,

मुस्कुराता रहा बस यही सोचकर,

मुझसे आओगे मिलने कभी लौटकर।

हम भुलाते रहे गम तेरा इसलिए,

तुमको पाया है हमने जहां छोड़कर।

सबने ठुकराया फिर भी शिकायत नहीं,

आंख अब तक ना सोयी तुम्हें देखकर।

रातें बदनाम हैं, अब कोई क्या करे,

कोई कैसे सुनेगा यहां जागकर।

मेरी कविता हो तुम एक हक़ीक़त भी हो,

आओ कब से खड़ा हूं यही सोचकर ।



नवीन कुमार (हिंदी शिक्षक),
प्रभारी, +2 उच्च विद्यालय ओकरी
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