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प्रतिशोध

प्रतिशोध

जितेन्द्र नाथ मिश्र
राज आज आठ वर्ष का हो गया है ‌। आज भी उनकी आंखें वो खुनी खेल भूला नहीं पाया है जो उसकी आंखों ने देखा था। उसे याद है मौत के सौदागरों ने किस तरह उसके पिताजी की हत्या किया था।
रमेश बाबू का एक छोटा सा परिवार था। परिवार में रमेश बाबू की पत्नी सुनंदा, बड़ी बेटी शुभद्रा और छोटा बेटा राज। रमेश बाबू एक दुकान में मुंशी गिरी का काम करते। सुनंदा मुहल्लों की औरतों का कपड़े सिलती।
इस तरह पति पत्नी की मेहनत से गृहस्थी की गाड़ी चल रही थी।
बेटी शुभद्रा ईंटर की विधार्थी है। वह पढ़ाई के साथ साथ घर घर जाकर बच्चों को ट्यूशन भी देती। उससे वह अपना पढ़ाई का खर्च निकाल लेती। छोटा भाई राज पांचवें का विधार्थी था।
मुहल्ले के कुछ आवारा लड़के की कुदृष्टि शुभद्रा पर थी। वे लोग सुभद्रा को बराबर आते जाते छेड़ते।परेशान हो आखिरकार एक रात शुभद्राअपने पिताजी से उन लड़कों की शिकायत की। अगले दिन रमेश बाबू ने उन लड़कों के पिता से शिकायत करते हुए कहा बेटा को सम्भाल कर रखें अन्यथा वाद्य होकर पुलिस में रपट लिखाई जाएगी। पर वो कहां सुधरने वाले थे। अंततः उनलोगों के खिलाफ थाने में रपट लिखाई गई। पर ये क्या। इसका उल्टा असर हुआ। रपट लिखाते ही उन्हें जान से मारने की धमकी दी जाने लगी। परेशान हो वो थाने से सुरक्षा के लिए कईबार लिखित अनुरोध किया। पुलिस प्रशासन तो आम जनता के लिए नहीं है उसका काम तो ऊंचे ओहदे पर बैठे रसुकदारों और धनवानों को सुरक्षा करना है। रमेश बाबू थाने का चक्कर लगाते रहे ।पर उन्हें पुलिस संरक्षण नहीं मिला।
उन आवारा लड़कों ने रमेश बाबु को सबक सिखाने का ठान लिया था । एक शाम जब वह राज और सुनंदा को बाजार से घुमाकर लौट रहे थे,उन आवारा लड़कों ने उनका अपहरण कर पास के बगीचे में ले गये। चालीस बार चाकू से गोदकर उसकी हत्या कर दी।
पूरे शहर में इस जघन्य हत्या कांड की चर्चा होने लगी। अगले दिन समाचार पत्रों में इस जघन्य घटना के छपते ही शहर में प्रशासन के खिलाफ आंदोलन आरंभ हो गया। स्वयंसेवी संगठन, नारी मुक्ति आंदोलन , नारी रक्षा वाहिनी की सदस्य, विरोधी दल के नेता समाचार पत्रों के सम्पादक और न्यूज़ चैनल वाले सुबह से शाम तक रमेश बाबू के दरवाजे पर रहते। उनके परिवार को ढांढस देते, और कहते मैं आपके साथ हूं।
पर ये क्या? सभी आरोपी बड़े बाप के बेटे थे। आरोपी के पिता ने उन सभी को जो कल तक रमेश बाबू के परिवार के साथ खड़े थे, उन्हें पैसा देकर खरीद लिया। क्योंकि ये सभी रमेश बाबूके परिवार को साथ देने नहीं बिकने के लिए यहां जमघट लगाए थे।
आरोपित लड़कों में से कुछ सत्ता धारी तो कुछ को विरोधी दल में सम्मान पूर्वक शामिल कर लिया गया।
न्यायालय के दरवाजे पर प्रशासन भी बिक गया। वह ऐसी थोथी दलील न्यायालय में रखा जिससे यह साबित नहीं हो पाया कि इन आरोपियों ने इस जघन्य हत्या कांड को अंजाम दिया है।
रमेश बाबू की मृत्यु के बाद भी न तो सुनंदा टूटी और न शुभद्रा। सुभद्रा अब वकालत का अध्धयन के साथ साथ कराटे का भी प्रशिक्षण लेने लगी। जिससे वह स्वयं को विपरीत परिस्थिति में बचा सके।
एक शाम शुभदा अपने भाई राज के साथ रासन का सामान लेकर घर लौट रही थी, अचानक उन आवारा लड़कों ने सुभद्रा के साथ बद्तमीजी करने का प्रयास किया।
सुभद्रा की आंखों में खून तैरने लगा। जूडो कराटे तो वह जानती ही थी। बीच बाजार में उन आवारा लड़कों को दौड़ा दौड़ा कर पीटा। किसी का हाथ तो किसी का पैर तो किसी की रीढ़ की हड्डी टूटी। एक का तो पुरा दांत ही टूट गया। छोटा भाई राज उसका विडियो बना लेता है ‌
देखते देखते सुभद्रा बकालत की पढ़ाई पुरी कर आज पहली बार उसका कदम न्यायालय की ओर बढ़ रहे हैं। और मन प्रतिशोध की आग में जल रहा है। वह न्यायालय से दस वर्ष पहले अपने पिता की हत्या का मुकदमा दुबारा खोलने के लिए प्रार्थना पत्र दिया। जिसपर विचार करते हुए दुबारा मुकदमा खोलने का आदेश देते हुए उस समय के सभी आरोपी, पोस्मार्टम करने वाले डॉक्टर , और थाने को नोटिस भेजा जाता है।
आरोपी के वकील ने वही थोथी दलील कोर्ट को देते हुए कहा कि सभी आरोपी संभ्रांत परिवार के हैं गलत मंशा से इन्हें आरोपी बनाया गया है। उस जघन्य हत्या में इन लोगों का कोई हाथ नहीं है। केवल कोर्ट का समय बर्बाद कर कोर्ट को गुमराह किया जा रहा है। इनके वकील ने न्यायालय से अनुरोध किया कि मुकदमें को दुबारा खोलने की कोई आवश्यकता नहीं है अतः मुकदमें को बंद कर दिया जाए।
अब सुभद्रा की बोलने की बारी आती है। सबसे पहले वह पोस्मार्टम करने वाले चिकित्सक को कटघरे में बुलाती है और कहती हैं कि आप न्यायालय को यह बताएं कि आपने मृतक के शरीर पर कितने चाकू के निशान देखे थे। क्या उसका जिक्र पोस्मार्टम रिपोर्ट में किया था। क्या रिपोर्ट की एक प्रति आप भी रखते हैं? डाक्टर ने कहा कि जहां तक मुझे याद है सभी कुछ रिपोर्ट में उल्लेख है।
दूसरे गवाह के रूप में थाना के अधिकारी को बुलाती है ।वह उससे पूछती है कि मृतक ने क्या इन आरोपियों के खिलाफ सन्हा दर्ज किया था। क्या मृतक ने थाने से सुरक्षा की मांग किया था? थाने के अधिकारी को यह उम्मीद नहीं थी कि एक नयी वकील जो पहली बार मुकदमें की पैरवी कर रही है, ऐसे तीखे प्रश्न करेगी। वह कहता है मुझे याद नहीं है।
कोर्ट दो घंटे के लिए स्थगित हो जाता है। न्यायाधीश दो बजे से पुनः सुनवाई का आदेश देते हुए थाना का अधिकारी और पोस्मार्टम करने वाले डॉक्टर को निर्देश देते हैं कि आप इस मुकदमे से सम्बंधित सभी अभिलेख लेकर दो बजे उपस्थित हों।
दो बजे पुनः कोर्ट की कार्रवाई आरंभ होती है। पोस्मार्टम रिपोर्ट की प्रति डाक्टर ने न्यायालय में प्रस्तुत किया। पोस्मार्टम रिपोर्ट की प्रति और थाने के अभिलेख में रखे गए पोस्मार्टम रिपोर्ट में अंतर देख जज भौचक रह जाते हैं।
थाने के अभिलेख में छेड़छाड़ औरसुरक्षा के आवेदन तो थे पर उसपर क्या कार्रवाई हुई कहीं कुछ भी नहीं था।
अंत में शुभद्रा उस विडियो को न्यायाधीश के समक्ष पेश करते हुए कहती है जज साहब इस विडियो को देखा जाए ।और अगले दिन का समाचार पत्रों की प्रति भी पढ़ने को देते हुए कहती है आखिर क्यों एक लड़की बीच सड़क पर कानून को हाथ में लेकर इन लोगों को पीट रही है । क्यों इस लड़की को पुलिस महकमे पर विश्वास नहीं।
जज साहब वह लड़की कोई और नहीं स्वयं मैं हूं।और पीटाई खाने वाला यही रसूखदार हैं जो पैसे के बल पर प्रशासन को खरीद लेता है।
वह उस अस्पताल से भी लाए गए सारे कागजात जैसे भर्ती कब कहां और क्यों हुए थे। एक्स-रे रिपोर्ट भी जज साहब को देते हुए अनुरोध करती हूं कि इन लोगों को ऐसी कठोर सजा दी जाए कि आने वाली पीढ़ी सदियों तक याद रखें।
जज साहब एक प्रार्थना और है कि ऐसे भ्रष्ट
पुलिस पदाधिकारी को भी दंड दें जिनके कारण न्यायालय सही ग़लत के जाल में फंसकर सही व्यक्ति को न्याय नहीं दे पाता है और तब आपकी छवि भी दागदार हो जाती है।
न्यायालय धैर्य पूर्वक सुभद्रा के तथ्यपूर्ण बातों को सुनकर फैसला सुनाते हुए सभी आरोपियों को आजीवन सश्रम कारावास की सजा सुनाती है, राजनैतिक दलों को भविष्य में ऐसे अपराधी को कुछ बोट के लालच में शामिल करने पर चुनाव आयोग से मान्यता समाप्त करने का अनुरोध किया जाएगा। पुलिस प्रशासन को चौबीस घंटे के अंदर अपनी कार्यशैली में बदलाव लाने का निर्देश देती है। साथ ही एक विशेष खंड पीठ का गठन कर प्रति दिन का रिपोर्टकार्ड पेश करने का आदेश देती है ।
आज शुभद्रा की मां सुनंदा बहुत खुश है। खुश क्यों न हो पहली ही मुकदमें में उसे जो जीत मिली है। आज शुभद्रा को आशीर्वाद देने के लिए स्वयं जज साहब भी उसके घर पर आए हैं क्योंकि एक हारे मुकदमा को दुबारा खोलने का अनुरोध कर जीत हासिल की।जो उसके जीवन का पहला मुकदमा था।
जितेन्द्र नाथ मिश्र, कदम कुआं, पटना।
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