सम्बन्ध और अनुबंध
जीवन का हर सम्बन्ध अनुबंध हो गया है,नि:स्वार्थ संबन्धों का प्राणांत हो गया है।
सभी रिश्ते नाते स्वार्थों से घिरते जा रहे हैं,
नि:स्वार्थ संबन्धों का अब अंत हो गया है।
पति- पत्नी, बहन भाई, पिता- माता, बेटा,
स्वार्थी जीवन शैली का चलन हो गया है।
संबंधों की मर्यादित सीमा को तोड़ ताडकर,
अनुबंध के कच्चे धागों को नमन हो गया है।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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