"दर्पण का दर्शन"
दर्पण, हे दर्पण, तू तस्वीर उतारता,मन के कोने-कोने की कहानी बयां करता।
सुंदरता और कुरूपता, दोनों को समेटे,
सच का आईना, हमेशा सच ही बतलाए।
तेरे शीशे में झाँककर, हम खुद को पहचानते,
अपनी कमियों को देख, सुधार के रास्ते ढूँढते।
कभी हँसते, कभी रोते, तेरे सामने ही,
तेरे दर्शन में ही, हमारी जिंदगी की कहानी।
तू सिर्फ शीशा नहीं, एक मित्र सच्चा है,
तेरी चमक में, हमारी आत्मा प्रतिबिंबित हो।
तेरे शब्द नहीं, पर तेरी चुप्पी बहुत कुछ कहती है,
तेरे दर्शन में, हमारी आत्मा को शांति मिलती है।
तू हमें दिखाता है, हम कौन हैं,
हमारी कमजोरियाँ और ताकतें।
तू हमें प्रेरित करता है, बेहतर इंसान बनने के लिए,
तू हमें सिखाता है, खुद को जानने के लिए।
हे दर्पण, तू हमारी आत्मा का आईना है,
तेरे बिना हम अधूरे हैं।
तेरे दर्शन में ही, हमारी जिंदगी का असली अर्थ है,
तेरे दर्शन में ही, हमारी आत्मा को मिलती मुक्ति है।
. स्वरचित, मौलिक एवं अप्रकाशित
"कमल की कलम से" (शब्दों की अस्मिता का अनुष्ठान)
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