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संस्कृति उत्थान न्यास द्वारा शहीदों का श्राद्ध तर्पण कार्यक्रम हुआ संपन्न :

संस्कृति उत्थान न्यास द्वारा शहीदों का श्राद्ध तर्पण कार्यक्रम हुआ संपन्न :

  • अपने महान पूर्वजों के जीवन से सतत सीखने रहने की प्रक्रिया का नाम ही है उनका श्राद्ध : डॉ आर्य

पिलखुवा। ( विशेष संवाददाता ) संस्कृत उत्थान्न न्यास फरीदनगर के तत्वावधान में ज्ञात अज्ञात क्रांतिकारी शहीदों, महापुरुषों का तर्पण व श्राद्ध कर्म एवं भारतीय ऋषि वैज्ञानिकों के जीवन से नई पीढ़ी को अवगत कराने के विचार से प्रेरित यहां पर यह अनोखा कार्यक्रम संपन्न हुआ। कार्यक्रम के बारे में जानकारी देते हुए वरिष्ठ समाज सेवी और हिंदूवादी चिंतक श्री सर्वेश कुमार मित्तल ने बताया कि कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित रहे भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता और सुप्रसिद्ध इतिहासकार डॉ राकेश कुमार आर्य ने इस अवसर पर कहा कि अपने महान पूर्वजों के जीवन से सतत सीखते रहने की प्रक्रिया का नाम ही उनका श्राद्ध है। उन्होंने कहा कि भारत के किसी भी कालखंड को गुलामी का कालखंड कहना अपने पूर्वजों के शौर्य, पुरुषार्थ और साहस का अपमान करना है। अपने गौरवपूर्ण इतिहास पर प्रकाश डालते हुए डॉ आर्य ने कहा कि भारत युगों पुराना देश है। इसके इतिहास को पिछले 5000 साल के इतिहास में नहीं समेटा जा सकता। उन्होंने कहा कि समाज में न्याय और समानता का संदेश केवल भारतीय संस्कृति ने दिया है। जिसकी रक्षा के लिए भारत के वीरों ने अपना खून बहाया है।
डॉ आर्य ने कहा कि सल्तनत काल, मुगल काल या ब्रिटिश काल से भारत के इतिहास के किसी कालखंड को संबोधित करना किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं है। विशेष रूप से तब जब इन तीनों कालखंडों में भारत के वीर योद्धाओं ने विदेशी शत्रुओं को भारत भूमि से बाहर खदेड़ने रहने के लिए अपने अनुपम और अतुलित बलिदान दिए। आज हमें इस भ्रांति से भी बाहर निकलने की आवश्यकता है कि 1857 की क्रांति से पहले के राजा केवल अपने-अपने लिए लड़ रहे थे और उनके भीतर राष्ट्रवाद की कोई भावना नहीं थी। इस प्रकार की भावना उन छदमी और पाखंडी इतिहासकारों ने पैदा की है जो भारत से द्वेष रखते हैं। सच्चाई यह है कि भारत के वीर योद्धाओं ने एक बार नहीं अनेक बार राष्ट्रीय सेनाओं का गठन कर विदेशी शत्रुओं को भारत भूमि से खदेड़ने का पवित्र कार्य किया है। इस संदर्भ में हमें यह याद रखना चाहिए कि बप्पा रावल ने प्रतिहार वंशी शासक नागभट्ट प्रथम के साथ मिलकर अरब तक धावा बोला था। हमें उनके देशभक्ति भरे जीवन को विस्मृत नहीं करना चाहिए।
उन्होंने पुष्यमित्र शुंग, पृथ्वीराज चौहान, राजा सुहेलदेव, राजा भोज, प्रतिहार वंशी गुर्जर सम्राट मिहिर भोज, बप्पा रावल, महाराणा कुंभा, राणा संग्राम सिंह, महाराणा प्रताप छत्रपति शिवाजी, योगराज सिंह गुर्जर, रामप्यारी गुजरी आदि के क्रांतिकारी जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हमें आज भी इनसे बहुत कुछ सीखने की आवश्यकता है। उनके सम्मान में लगाई गई आज की प्रदर्शनी का अभिप्राय यही है कि भारत अभी भी अपनी स्वाधीनता की तीसरी लड़ाई लड़ रहा है । अभी इतिहास और संस्कृति दोनों को ही हमें गुलामी की जंजीरों से बाहर करने के लिए लंबी लड़ाई लड़नी पड़ेगी।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे धौलाना श्री धर्मेश तोमर ने अपने संबोधन में कहा कि हमें जातिवाद या किसी भी प्रकार की संकीर्णता से ऊपर उठकर काम करने की आवश्यकता है । क्योंकि सनातन के लिए आज भी गंभीर खतरे चारों ओर से दिखाई दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि भारत सनातन राष्ट्र है। इसलिए हम सब मिलकर सनातन के लिए लड़ाई लड़ें ।सनातन का सम्मान यदि बचता है तो हमारा अस्तित्व बचा रहेगा। और यदि सनातन नहीं रहा तो हम भी नहीं रहेंगे इसलिए हम सब अपने आपसी मतभेदों को भूल कर प्रधानमंत्री मोदी जी के हाथों को मजबूत करते हुए सनातन के लिए संघर्ष करने की प्रेरणा लें। श्री तोमर ने कहा कि भारत आज सुरक्षित हाथों में है। इसको विश्व गुरु बनाने के लिए भारत के प्रत्येक नागरिक को अपने स्थान पर खड़े होकर राष्ट्र के लिए काम करने के अपने पूर्वजों के संकल्प को फिर से ग्रहण करना चाहिए। कार्यक्रम में विशिष्ट वक्ता के रूप में उपस्थित रहे श्री एम एस जैन ने कहा कि
भारत संस्कृति और संस्कारों का देश है और इसकी यह खूबसूरती वेदों की ऋचाओं के माध्यम से हमारा मार्गदर्शन करती हैं। उन्होंने कहा कि भारत के इतिहास को आज गहराई से समझने और उसकी पड़ताल करने की आवश्यकता है। क्योंकि जिन लोगों ने भारत का इतिहास लिखा है उनके भीतर भारत के बारे में द्वेष भाव रहा है।
कार्यक्रम के आयोजन के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए विद्यालय के संस्थापक आयोजक श्री सुरेश कुमार ने कहा कि सनातन के संस्कारों की सुरक्षा करना ही उनके जीवन का और उनकी शैक्षणिक संस्थाओं का एकमात्र उद्देश्य है। उन्होंने कहा कि जिन बलिदानियों ने अपना बलिदान देकर हमें स्वाधीनता प्रदान की उनके ऋण से हम कभी उऋण नहीं हो सकते। हमें नई पीढ़ी का सुसंस्कृत रूप में निर्माण करने के लिए अपने गौरवपूर्ण अतीत की पुनः स्थापना करने की आवश्यकता है। कार्यक्रम के मार्गदर्शक श्री अरविन्द भाई ओझा जी महाराज श्री हनुमत कथा व्यास' मोदीनगर ने कार्यक्रम के प्रारंभ में ही कहा कि आज हमें अपने वीरोचित इतिहास को समझकर अपने योद्धाओं को उनके पराक्रम के अनुरूप श्रद्धांजलि देनी है। उन्होंने कहा कि भारत ऋषि भूमि है । पवित्र भूमि है। देवभूमि है। इसकी दिव्य संस्कृति का निर्माण इसके सनातन की खूबसूरती की पहचान है।उन्होंने कहा कि जो समाज अपने पूर्वजों का सम्मान नहीं कर पाता, वह अपना सम्मान खो देता है। इसके साथ ही जो समाज या राष्ट्र अपने पूर्वजों की अमर कीर्ति को बनाए रखने के लिए संघर्ष करता रहता है, वह सभ्यताओं की दौड़ में अपना स्थान बनाए रखने में सफल रहता है। कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री रवि मोहन ( साठे ग्रुप ऑफ इण्डस्ट्रीज गाजियबाद ) द्वारा की गई। यह विशेषकार्यक्रम लाला छितरमल भगवानदास सरस्वती विद्या मन्दिर इण्टर कॉलिज फरीदनगर में संपन्न हुआ। कार्यक्रम का सफल आयोजन ग्राम विकास समिति अनवरपुर फरीदनगर जनपद गाजियाबाद द्वारा किया गया। विद्यालय की प्रबंधन समिति के अध्यक्ष श्री रणपाल सिंह ने कार्यक्रम के अंत में सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया।
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