बेटी
बेटियाँ पढ रही हैं, और आगे बढ रही हैं,धरा की बात क्या, गगन तक बढ रही हैं।
घर आँगन से विज्ञान शिखर तक वो छायी,
बेटियाँ कुछ शोहदों से, क्यों डर रही हैं?
शायद कुछ कमी हमारे संस्कारों में हो रही है,
माँ बाप, समाज से, कहीँ कुछ चूक हो रही है।
घटने लगी नैतिकता, बुजुर्गों में भी अब तो,
आधुनिकता की होड, जब से यहाँ बढ रही है।
आओ नैतिकता का परचम, जहां में फहरायें,
बेटीयों को सक्षम और सामर्थ्यवान भी बनायें।
चाहे जो छूना, किसी बहन- बेटी का आँचल,
दुष्टों को जहन्नुम का रास्ता, तत्काल दिखायें।
अ कीर्ति वर्धन
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