मेरे प्रिय शिक्षक महान!
डॉ रामकृष्ण मिश्रमेरे प्रिय शिक्षक महान!
जिस सरल भाव से स्नेह पात्र
माना, अबोध सुधि रहित छात्र
संज्ञानित कर अक्षर अशेष
परिचित करवाते दिये ज्ञान।।
जिस पथ में था भूला -भूला
था तमस - तमस सा कटु जूला
दृग पट के खोले मुकुल छंद
विकृति को दे सार्थक विराम।।
जिसने शाश्वतता की महिमा
सामाजिक जीवन की गरिमा
सिखलाई खुला - खिला अंतर
मानो छितराया नव विहान।।
युग की परिभाषा झलक गयी
ईहा उन्नति की ललक गयी
जाग्रत सुकार्य का हुआ व्योम
फिर फैला गौरव- यश वितान।।
शत नमन उन्हें ंजो पुण्य चरण
कर संस्कारों का पुरश्चरण
जीवन-गति को गतिमयता दी
उस देवतुल्य गुरु को प्रणाम।।
जिस सरल भाव से स्नेह पात्र
माना, अबोध सुधि रहित छात्र
संज्ञानित कर अक्षर अशेष
परिचित करवाते दिये ज्ञान।।
जिस पथ में था भूला -भूला
था तमस - तमस सा कटु जूला
दृग पट के खोले मुकुल छंद
विकृति को दे सार्थक विराम।।
जिसने शाश्वतता की महिमा
सामाजिक जीवन की गरिमा
सिखलाई खुला - खिला अंतर
मानो छितराया नव विहान।।
युग की परिभाषा झलक गयी
ईहा उन्नति की ललक गयी
जाग्रत सुकार्य का हुआ व्योम
फिर फैला गौरव- यश वितान।।
शत नमन उन्हें ंजो पुण्य चरण
कर संस्कारों का पुरश्चरण
जीवन-गति को गतिमयता दी
उस देवतुल्य गुरु को प्रणाम।।
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रामकृष्ण
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