काश कोई होता जो बिन कहे सब समझ लेता
ऐसा भी होता जग में कोई ,जो मेरी नजरों को पढ़ लेता ।
मेरी नजरों को पढ़कर वह ,
एक नई कहानी भी गढ़ लेता ।।
चल देता मंजिल को ढूॅंढ़ने ,
नव मार्ग पर वह कढ़ लेता ।
हासिल करता मुकाम वह ,
सर्वोच्च शिखर पे चढ़ लेता ।।
चल पड़ता वह नव मार्ग पर ,
नव मार्ग पर भी बढ़ लेता ।
जहाॅं मार्ग कोई संशय होता ,
वहीं अल्प समय ठढ़ लेता ।।
मानव मानव एक समझता ,
मानवता कृति समझ लेता ।
काश कोई होता ऐसा जो ,
बिन कहे सब समझ लेता ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )
बिहार ।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag
0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com