प्यार ही प्यार
हिन्द व हिन्दी में ,प्यार ही प्यार है ।
दोनों होते अधूरे ,
प्यार बेशुमार है ।।
दोनों एकदूजे हेतु ,
एकदूजे पे हार है ।
जो ऑंख दिखाए ,
उन्हें देते मार हैं ।।
हिन्द हिन्दी मिलकर ,
संस्कृति सृजनहार हैं ।
दोनों के सम्मान में ,
तिरंगा बेकरार है ।।
नहीं है भेदभाव जहाॅं ,
हर धर्म जहाॅं यार है ।
हिन्द हिन्दी के प्यार में ,
यह तिरंगा पुरस्कार है ।।
हिन्द हिन्दी तिरंगा को ,
मेरा प्रणाम बारंबार है ।
हिन्द हिन्दी तिरंगा तेरा ,
हम पर सदा आभार है ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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