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विद्या के डगमगाते कद‌म

विद्या के डगमगाते कद‌म

सुरेन्द्र कुमार रंजन

माँ शारदे बैठी तू क्यों मुस्करा रही है ,
देखो, तुम्हारी विद्या आंसू बहा रही है।

अब तो पढाई कैसी, पह‌ना भी मूर्खता है,
होगी अरी परीक्षा, यह कौन देखता है
पूर्जा बना सहारा अंदाज आसरा है,
हर छात्र के लिए बस ये दो ही देवता है।

घर- घर में पाठ्य पुस्तक मातम मना रही है,
देखो, तुम्हारी विद्या आंसू बहा रही है।

शिक्षक पढ़ा रहे हैं बस रोटियों की खातिर,
सम्मान छोड़ गुरू तो सेवक कहा रहे हैं।
नित नोट लिख रहे वो ट्यूशन पढ़ा रहे हैं,
घर पर ही बैठे- बैठे वेतन उठा रहे हैं।

पतवारहीन नैया मझधार जा रही है,
देखो तुम्हारी विद्या आंसू बहा रही है।

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