जिंदगी
पाप पुण्य की पटरी पर दौड़ती,यह जिंदगी एक रेलगाड़ी है।
भाग्य और कर्म हैं पहिए इसके,
वक्त एक कुशल ड्राइवर है।
माया और मोह रूपी गार्ड,
हरी झंड़ी जब हिलाता है।
हर धर्म का योगी तब,
अपना - अपना बर्थ पाता है।
सफर रूपी इस संसार में,
हम सभी घबराते हैं।
दुःख रूपी टी०टी० से,
कभी ना कभी पकड़े जाते हैं।
उम्र रूपी स्टेशनों को,
तीव्र गति से तय करते।
मौत रूपी मंजिल पर पहुंच,
वे सदा रूक जाते हैं।
सभी योगी सफर समाप्त कर,
सुख रूपी प्लेटफार्म पर उतर ।
अपने - अपने घरों की ओर,
शीघ्र प्रस्थान कर जाते हैं।
=> सुरेन्द्र कुमार रंजन
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