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इश्क की दरिया

इश्क की दरिया

क्यों इश्क की दरिया में कूदना चाहती हो ,
क्यों जीवन से तू अपनी उबना चाहती हो ।
ऐसी जल्दी भी तुझे क्या पड गई है अभी ,
क्यों इश्क की दरिया में डूबना चाहती हो ।।
मत करो तुम लैला मजनूॅं का यह नकल ,
क्यों लेती हो तुम फिल्मी दृश्यों के अकल ।
अपरिचित को देती हो तुम अपना परिचय ,
एक बार देख तो लो मात पिता के शकल ।।
इश्क अग्नि की धधकती भयंकर हैं लपटें ,
धधकती लपटों में जल जाएगी तल जाएगी ।
उन्हें क्या पड़ी है फिल्म दिखानेवालों का ,
तेरी करतूत मात-पिता को ही खल जाएगी ।।
बहुत विख्यात है यह लैला मजनूॅं की कहानी ,
उन मात-पिता पर क्या क्या गुजरा होगा ।
रो रहे होंगे उनकी मात-पिता छुप छुप कर ,
रोता होगा दिल उसका या होता मुजरा होगा ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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