Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

हरितालिका-व्रत (तीज) : एक विमर्श

हरितालिका-व्रत (तीज) : एक विमर्श

मार्कण्डेय शारदेय
इस बार दिनांक 05.09.024 (गुरुवार) को द्वितीया तिथि दिन में 10.05 तक है।इसके बाद तृतीया तिथि प्रारम्भ हो जाती है।अगले दिन शुक्रवार (06.09.024) को यह तिथि दिन में 12.08 तक रहेगी, तत्पश्चात् चतुर्थी हो जाएगी।
अब लोगों का प्रश्न है:
क्या गुरुवार को तृतीया के प्रवेश के साथ ही उपवास रखा जाए और शुक्रवार को तीज है तो चौथ के प्रवेश के बाद पारण कर लिया जाए?
तीज के सूर्योदय के पहले स्त्रियाँ सहरगही करती हैं तो क्या इस बार उस समय तृतीया रहने से नहीं करेंगी?
जब शुक्रवार को दिन में 12.08 के बाद चतुर्थी हो जा रही है तो क्या इसके पहले ही पूजा कर लेनी होगी?
मेरा मन्तव्य है कि द्वितीया में तृतीया का व्रत नहीं होता।इसीलिए गुरुवार को द्वितीया के बाद (दिन में 10.05 से) रातभर तृतीया तिथि तथा हस्त नक्षत्र के रहने पर भी तीज नहीं मानी गई।तीज-चौथ का योग गौरी-गणेशयोग व मातृपुत्रयोग माना गया है तथा उत्तम कहा गया है।इसलिए तृतीया के बाद चतुर्थी का होना दोष नहीं, गुण ही है।इस कारण आप पूजा दिन में करती हों तो दिन में करें और यदि रात्रि में करती हों तो रात में करें।हाँ; सहरगही जैसे करती हैं, वैसे ही करें।कारण कि आपका व्रत एक सावन दिन का होता है।यहाँ सावन का अर्थ एक सूर्योदय से दूसरे सूर्योदय तक का व्रतोपवास।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ