किस विधि तुमको ध्याउं प्रभु जी।
किस विधि तुमको पाउं।।मन है कि कुछ समझ न पाता।
जग है कि मन को भरमाता।।
राह तुम्हारे तक जाने का।
तरह तरह से सब बतलाता।।
कोई कहता मंदिर जाओ।
कोई कहे बस ध्यान लगाओ।।
कोई दान करने को कहता।
तीरथ में ही ईश्वर रहता।।
कोई कहे दीन दुखियन सेवा।
ऐसा कर पावोगे मेवा।।
जितने मुंह उतनी ही बातें।
दुविधा में हैं दिन अरू रातें।।
तुम ही हमको राह दिखाओ।
सब जैसे तुम मत भरमाओ।।
तुम को सब छलिया कहते हैं।
तेरे भरोसे सब रहते हैं।।
सिर थामे मैं बैठ गया हूँ।
आंख बंद कर बैठ गया हूँ।।
उलझन को सुलझा दो प्रभु जी।
अपने तक पहुँचा दो प्रभु जी।।
माया तेरी बहुत प्रबल है।
पर मेरा विश्वास अटल है।।
सच्चे मन जो ध्यान लगाया।
जग में उसने तुम को पाया।।
जय प्रकाश कुवंर
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