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कभी कभी तो पास हमारे आया भी कीजे।

कभी कभी तो पास हमारे आया भी कीजे।

डॉ रामकृष्ण मिश्र
कभी कभी तो पास हमारे आया भी कीजे।
अपना भी बहुमूल्य समय कुछ जाया भी कीजे।।
चर्चाएँ दुनिया भर की प्राय; होती रहतीं।
नजदीकी अनुभव की कथा सुनाया भी कीजे।।
कितने दुख के अलबम रक्खे मन की पेटी में।
कभी कभी तो ओठो पर टहलाया भी कीजे।।
जिधर देखिए करुणाई का मेला सा होगा।
अपने भावों के शैशव बहलाया भी कीजे।।
बहुत खास अपने कहलाने भर शायद होते।
कुछ भावुकता के कुनवे अब टाला भी कीजे।।
सारी उमर बीत जाएगी परख नहीं सकते।
ऐसे में कचरे सा स्वप्न बहाया भी कीजे।।

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