अंतर लहरें उठ रहीं,नेह मकरंद पाने को

अंतर लहरें उठ रहीं,नेह मकरंद पाने को

मन गंगा सा निर्मल पावन,
निहार रहा धरा गगन ।
देख सौम्य काल धारा,
निज ही निज मलंग मगन ।
कर सोलह श्रृंगार कामनाएं,
आतुर प्रीत पल चंद पाने को ।
अंतर लहरें उठ रहीं,नेह मकरंद पाने को ।।


नवल धवल कायिक आभा,
स्नेहिल मृगनयनी दृष्टि ।
प्रसूनी बहार परिवेश उत्संग,
असीम चाह ज्योत्सना वृष्टि ।
मंत्रमुग्ध अंतरतम भावनाएं,
दिव्य मिलन सुगंध फैलाने को ।
अंतर लहरें उठ रहीं,नेह मकरंद पाने को ।।


आशा उत्साह जोश उमंग,
अंतर्मन अथाह संचरण ।
प्रीति अनुबंधित पथ गमन,
खुशियां अनंत अवतरण।
अतरंगी तिमिर अवसानित,
अनुपम प्रकाश रंद सजाने को ।
अंतर लहरें उठ रहीं,नेह मकरंद पाने को ।।


विखंडित वैमनस्य वैर भाव ,
अखंड यशस्वी प्रेम पथ ।
प्रणय उपमित अनुभूति,
आनंद पर्याय जीवन रथ ।
घट सुरभित स्वर लहरी,
हाव भाव मंद मंद मुस्काने को ।
अंतर लहरें उठ रहीं,नेह मकरंद पाने को ।।


कुमार महेन्द्र(स्वरचित मौलिक रचना)
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