खतरा बन चुका है मानव
प्रेम करूणा व सद्भावना से,मानव जीवन खुशहाल था ।
इसके बिना मानव जीवन,
नरक से भी बदहाल था।
मानव आज रहा न मानव,
बन चुका है आज को दानव ।
माँ-बहनों की अस्मत का,
खतरा बन चुका मानव।
ना रही सुरक्षित अपने घर में,
माँ, बहना और बेटी आज ।
पिता, भाई और बेटे ही,
लूट रहे है अस्मत आज ।
द्वेष, घृणा व कटुता से,
आज समाज शर्मशार है ।
हत्या, रेप व लूटपाट ही,
आज लोगों का अधिकार है।
पता नहीं क्या हुआ समाज को ,
जो मानव इतना पतित हुआ ।
अपनी ही बहू-बेटियों की खातिर,
आज वो इतना घृणित हुआ।
सबक सिखाएं ऐसे वहशियों को,
माँ-बहनों को भयमुक्त करें।
डरी-सहमी बहू-बेटियों को,
इन दुष्टों से भयमुक्त करें।
⇒ सुरेन्द्र कुमार रंजन
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