कलम की कहानी
कलम तू तो सदा स्वतंत्र है ,उगलती सबकी मनमानी ।
सबकी कहानी तू उगलती ,
राजा प्रजा चाहे हों रानी ।।
तूने ही रामायण लिखा है ,
वाल्मीकि जी के जुबानी ।
रावण कौरव को न छोड़ा ,
कंस बालि की ये कहानी ।।
तूने ही है इतिहास लिखा ,
तूने ही तो सुधारा वाणी ।
तूने ही तो आचार दिया है ,
बन साहित्य का तू पाणी ।।
तूने वेद शास्त्र पुराण दिया ,
तू निकला जग में ज्ञानी ।
तेरा काम सदा सराहनीय ,
क्या लिखूॅं वर्णन बखानी ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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