गंभीरता होती नहीं बनने लगे हैं लोग।
डॉ रामकृष्ण मिश्र
गंभीरता होती नहीं बनने लगे हैं लोग।
अपने घरों में भाई ठगने लगे हैं लोग।।
जब भी प्रमत्त नदियाँ रहतीं उफान पर।
राहत के नाम कोश चुराने लगे हैं लोग।।
दिखता नहीं है देशहित उत्सर्ग किसी का।
सम्पन्न स्वार्थवान कतराने लगे हैं लोग।।
रोनी सी हो रही है मनुजता हरेक पल।।
जूए की तरह दाँव लगाने लगे है लोग।।
अधिकार के विरोध में धरना हुड़ार का।
नारों के शोर जोर से घवराने लगे है लोग।।
ऐसा हुआ कि जुल्म में आवाज खो गयी।
लेकर गुलेल हाथ डराने लगे हैं लोग।। हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें|
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