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संबंधों का वृक्ष

संबंधों का वृक्ष

मित्रों यह उद्धरण संबंधों की कोमलता एवं उनकी नाजुक प्रकृति को बेहद खूबसूरती से बयां करता है। एक वृक्ष की ही तरह, संबंध भी धीरे-धीरे पनपते हैं, उन्हें पोषण और देखभाल की आवश्यकता होती है। वे भावनाओं के सूक्ष्म बदलावों के प्रति संवेदनशील होते हैं, ठीक वैसे ही जैसे एक पेड़ हवा और बारिश के झोंकों से प्रभावित होता है।

भावनाओं का झुकाव :
संबंध भावनाओं के आधार पर पनपते हैं। प्यार, दोस्ती, विश्वास, सम्मान जैसी भावनाएं ही रिश्तों को मजबूत बनाती हैं। जब हम किसी से जुड़ते हैं, तो अपनी भावनाओं को उनके साथ साझा करते हैं। ये भावनाएं ही हमें एक-दूसरे के करीब लाती हैं। लेकिन साथ ही, ये भावनाएं ही कभी-कभी हमें दुख भी दे सकती हैं। निराशा, गुस्सा, ईर्ष्या जैसी भावनाएं रिश्तों को कमजोर कर सकती हैं।
स्नेह का बीज :
संबंधों का बीज स्नेह में बोया जाता है। स्नेह की तरह प्यार भी एक ऐसा बीज है जो धीरे-धीरे पनपता है और बड़ा पेड़ बन जाता है। जब हम किसी से स्नेह करते हैं, तो उसका ख्याल रखते हैं, उसकी खुशी के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं। यह स्नेह ही रिश्तों को मजबूत बनाता है।
शब्दों का तीर :
शब्दों का हमारे जीवन में बहुत बड़ा प्रभाव होता है। एक शब्द हमें खुश कर सकता है तो दूसरा हमें दुखी। संबंधों में भी शब्दों का बहुत महत्व होता है। कभी-कभी हमारे कुछ शब्द अनजाने में दूसरे व्यक्ति को ठेस पहुंचा सकते हैं और रिश्ते में दरार पैदा कर सकते हैं। इसलिए हमें हमेशा सावधानी से शब्दों का चयन करना चाहिए।
इस उद्धरण से हमें यह सीख मिलती है कि संबंधों को संजोना बहुत जरूरी है। हमें अपने रिश्तों को मजबूत बनाने के लिए प्रयास करना चाहिए। हमें अपनी भावनाओं को समझना चाहिए और उन्हें सही तरीके से व्यक्त करना चाहिए। हमें अपने शब्दों का ध्यान रखना चाहिए और कभी भी किसी को जानबूझकर ठेस नहीं पहुंचानी चाहिए।

. "सनातन"
(एक सोच , 
प्रेरणा और संस्कार) 
पंकज शर्मा (कमल सनातनी)
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