जेकरा में जेकर मन रम गइल।
उहे जीवन में ओकर आपन हो गइल।।केहू शरीर देखा के केहू के रिझावत बा।
चिकन चिकन बात क के केहू भरमावत बा।।
मटकी कनखी मार के केहू साथी पटावत बा।
बाल लहरा के केहू नेवता पठावत बा।।
हरकत इ सब बस एगो मछली के चारा ह।
लालच में पड़ निगलला पर, फेर ना उबारा ह।।
रूप तनी कमो होखे, दिल सुंदर चाहीं।
जीवन में जीवन साथी, एह से बढ़िया नाहीं।।
सुंदर रूप वो मन दोनों बड़ा भाग्य से मिलेला।
बिधाता जब मिला दिहें , तबे भाग्य खिलेला।।
जय प्रकाश कुवंर
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