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सर्वपितृ अमावस्या का महत्त्व

सर्वपितृ अमावस्या का महत्त्व

प्रति वर्ष श्राद्ध विधि करना यह हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण आचार धर्म है एवं उसका महत्व अनन्य साधारण है। पुराणकाल से चलती आ रही इस विधि का महत्व हमारे ऋषि मुनियों ने अनेक धर्म ग्रंथो में लिखकर रखा है। इस लेख में सर्वपितृ अमावस्या का महत्व हम जान कर लेंगे। दिनांक के अनुसार इस वर्ष सर्वपितृ अमावस्या 02 अक्टूबर को है।

पितृपक्ष की अमावस्या को ही 'सर्वपितृ अमावस्या' कहते हैं l इस तिथि पर कुल के सभी पितरों के लिए यह श्राद्ध किया जाता है l पूरे वर्ष में अथवा पितृपक्ष के अन्य तिथियों पर श्राद्ध करना संभव ना होने पर, इस तिथि पर सभी पितरों के लिए यह श्राद्ध करना अत्यंत आवश्यक है; क्योंकि पितृपक्ष की यह अंतिम तिथि है l शास्त्र में बताया गया है कि श्राद्ध के लिए अमावस्या की तिथि अधिक योग्य तिथी है और पितृपक्ष की अमावस्या यह सर्वाधिक योग्य तिथि है l

शास्त्र में जिन कृतियों के लिए जो काल निश्चित कर दिया है, उस-उस काल में वो कृति करना आवश्यक और महत्त्वपूर्ण है l इसलिए पितृपक्ष में ही महालय श्राद्ध करे l विभिन्न पक्षों ने पितृपक्ष में महालय श्राद्ध करने की बात कही है l पितृपक्ष में केवल एक दिन मृत व्यक्ति की मृत्यु तिथि पर ही महालय श्राद्ध किया जाता है। यदि कोई जन्म शौच या मृत्यु शौच (सोयर - सूतक) या किसी अन्य अपरिहार्य कारण से उस तिथि पर महालया श्राद्ध करने में असमर्थ है तो उसे सर्वपितृ अमावस्या को श्राद्ध करना चाहिए। अन्यथा सुविधानुसार कृष्ण पक्ष की अष्टमी, द्वादशी, अमावस्या और व्यतिपात योग के दिन भी महालया श्राद्ध किया जा सकता है।

कलियुग में कम-अधिक प्रमाण में प्रत्येक को आध्यात्मिक कष्ट होने के कारण, श्राद्ध करने के साथ ‘श्री गुरुदेव दत्त’ यह नामजप भी अधिकाधिक करे l दत्त देवता का पितरों के स्वामी होने के कारण उनके नामजप से पितरों को सद्गति मिलने में सहायता होती है l उसका लाभ हमें भी होता है l

संदर्भ - सनातन संस्था का ग्रंथ "श्राद्ध"
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