प्रीत की रीत पर, बंध रहे मन्नतों के धागे
अंतर अथाह निर्मल पावन,निहार रहा धरा गगन ।
देख सौम्य काल धारा,
निज ही निज मलंग मगन ।
परम बिंदु स्तुत कामनाएं,
चाह नेह पथ बाधा भागे ।
प्रीत की रीत पर, बंध रहे थे आईमन्नतों के धागे ।।
नवल धवल तन मन प्रभा,
स्नेहिल मृगनयनी दृष्टि ।
प्रसूनी बहार परिवेश उत्संग,
असीम चाह ज्योत्सना वृष्टि ।
मंत्रमुग्ध अंतरतम भावनाएं,
दिव्य मिलन अभिलाष जागे ।
प्रीत की रीत पर, बंध रहे मन्नतों के धागे ।।
आशा उत्साह जोश उमंग,
अंतर्मन अथाह संचरण ।
प्रीति अनुबंधित पथ गमन,
खुशियां अनंत अवतरण।
अतरंगी तिमिर अवसानित,
आलोक अनुपमा घट विराजे ।
प्रीत की रीत पर, बंध रहे मन्नतों के धागे ।।
विखंडित वैमनस्य वैर भाव ,
अखंड यशस्वी प्रेम पथ ।
प्रणय उपमित अनुभूति,
आनंद पर्याय जीवन रथ ।
उरस्थ मधुर स्वर लहरियां,
मंद मंद सौम्य मुस्कानों आगे ।
प्रीत की रीत पर, बंध रहे मन्नतों के धागे ।।
कुमार महेन्द्र
(स्वरचित मौलिक रचना)
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