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पुस्तक चौदस मेला के दूसरे दिन आयोजित हुई श्रुतलेख प्रतियोगिता

पुस्तक चौदस मेला के दूसरे दिन आयोजित हुई श्रुतलेख प्रतियोगिता

  • साहित्य सम्मेलन में विद्यार्थियों को पढ़ाया गया सुलेख का पाठ
पटना, २ सितम्बर । हिन्दी पखवारा के अंतर्गत, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में लगाए गए 'पुस्तक-चौदस-मेला' के दूसरे दिन, सोमवार को, छात्र-छात्राओं के लिए 'श्रुतलेख-प्रतियोगिता' का आयोजन किया गया। जिसमें, रवींद्र बालिका विद्यालय, राजेंद्र नगर, प्रभुतारा स्कूल, संकरी गली, पटना सिटी, सैंट जौन्स स्कूल, क़दमकुआं, सैंट ऐंड्र्युज ऐकेडमी, 'आचार्य सुदर्शन कृष्णा निकेतन' आदि विद्यालयों के चौथी से आठवीं के छात्र-छात्राओं ने भाग लिया।
प्रतियोगिता के आरंभ में बिहार सरकार के पूर्व विशेष सचिव एवं निर्णायक-मंडल के अध्यक्ष डा उपेन्द्र नाथ पाण्डेय ने 'श्रुतलेख' के महत्त्व को समझाते हुए, विद्यार्थियों को सुलेख का पाठ पढ़ाया। उन्होंने कहा कि बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन जैसी गौरवशाली संस्था में प्रतिभागिता भी गौरव का विषय है। इस संस्था में आए हैं तो कुछ विशेष अर्जित कर जाएँ।
इस अवसर पर सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, प्रतियोगिता आयोजन समिति के सदस्यगण ई अशोक कुमार, आराधना प्रसाद, प्रेमलता सिंह तथा डा सीमा रानी, शैलेंद्र कुमार, मनोज कुमार उपाध्याय, गणेश झा, कुमारी प्रमिला समेत विभिन्न विद्यालयों के शिक्षकगण भी उपस्थित थे। कृष्णा निकेतन की छात्राओं ने महाकवि जयशंकर प्रसाद के अमर गीत 'अरुण यह मधुमय देश हमारा' समेत अनेक मधूर गीतों के समूह-गान सहित अंत्याक्षरी आदि सांस्कृतिक प्रस्तुतियों से विद्यार्थियों और अतिथियों का मनोरंजन भी किया।पुस्तक मेले में भी विभिन्न विद्यालयों के शिक्षक, अभिभावक एवं छात्र-छात्राओं की बड़ी उपस्थिति रही। विद्यार्थियों ने बाल-साहित्य के अतिरिक्त अन्य पुस्तकों की ख़रीद की। मेले में बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा प्रकाशित पुस्तकों 'बिहार की साहित्यिक प्रगति', डा शशिभूषण प्रसाद सिंह की पुस्तक 'बिहार की गौरव गाथा', सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ की पुस्तकें 'हिन्दी के प्रणम्य पुरुष', 'प्रियंवदा', 'मै मरुथल सा चिर प्यासा', 'प्रथम पग', अमरेन्द्र नारायण की पुस्तक 'पावनचरित डा राजेंद्र प्रसाद', वरिष्ठ कवि मृत्युंजय मिश्र करुणेश के ग़ज़ल-संग्रह 'रस्ते में गुलमोहर है', 'बटोहिया गीत के अमर रचनाकार बाबू रघुवीर नारायण' आदि की ख़ूब मांग रही। नेशनल बूक ट्रस्ट की दीर्घा पर भी पाठकों की पर्याप्त भींड़ थी ।
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