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काथा हो ग‌इल,

काथा हो ग‌इल,

जय प्रकाश कुवंर  
अब पारसादी बांटात बा।
देश आजाद हो ग‌इल,
अब हिसेदारी बांटात बा ।।
देश जब गुलाम रहे,
सब केहू समान रहे।
नौकरी पावे खातिर,
जाति ना, तब बुद्धि गिनात रहे।।
आजाद देश में अब,
बुद्धि भाड़ में ग‌इल।
नौकरी में ढूके खातिर,
जाति आरक्षण लागू भ‌इल।।
आरक्षण सिस्टम में,
कमो नंबर वाला चुनात बा।
जादा नंबर पा के भी,
उंच जाति वाला रोड पर छिछियात बा।।
आजाद भारत में अब,
बुद्धि नीचे दब ग‌इल।
सब जगह आरक्षण के चलते,
जाति अब उजागर भ‌इल।।
एहू से बड़ा करामात,
अब रोज देखल जात बा।
परीक्षा से पहले ही,
पेपर आउट हो जात बा।।
अब हमनी गुलाम न‌इखीं,
देश अब आपन बा।
नीति, कानून सब अपने बनावे के बा,
जेकर संख्या जादा होई, उहे अब राजा बा।। 
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