पितृपक्ष में कौआ पंचायत

पितृपक्ष में कौआ पंचायत

 जय प्रकाश कुंवर
पितृपक्ष भाद्र मास के पूर्णिमा से आरम्भ होकर आश्विन मास की अमावस्या तक होता है। इस साल पितृपक्ष का आरम्भ १७ सितम्बर २०२४ से हो चुका है, जो २ अक्तूबर २०२४ तक रहेगा। इन दिनों में पितरों को तर्पण और पिंडदान दिया जाता है और पंडित अथवा पुरोहित की सहायता से श्राद्ध कर्म किये जाते हैं। परिवार के सदस्यों द्वारा पितरों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की जाती है और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है। इस अवधि में बिहार प्रदेश के गया में पितृपक्ष मेला लगता है, जहाँ देश विदेश से लोग फल्गु नदी के तट पर अपने पितरों को पिंडदान करने आते हैं। श्राद्ध केवल तीन पीढ़ियों तक का ही होता है। धर्म शास्त्रों के मुताबिक इस समय परलोक से पितर अपने स्वजनों के पास आ जाते हैं। श्राद्ध कर्म और पिंडदान के अन्न का कुछ हिस्सा पहले यम के प्रतीक कौआ, कुत्ते और गाय के लिए निकाला जाता है। पितृपक्ष में कौओं को भोजन कराने की परंपरा के पीछे कुछ मान्यताएँ हैं। कौओं को भोजन कराने से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है। कौओं द्वारा ग्रहण किया गया भोजन पितरों तक पहुँचता है और पितरों को मोक्ष प्राप्त होता है। कौआ अगर अपने भोजन का अंश ग्रहण कर उड़ जाता है, तो ऐसा माना जाता है कि आपके पूर्वज आपको आशीर्वाद देकर गये हैं।
उपरोक्त तथ्य हमारी धार्मिक मान्यताएँ हैं और हम सब पीढ़ियों पीछे से अपने पूर्वजों के लिए ऐसा करते चले आ रहे हैं। मगर आज कल ऐसा देखा जा रहा है कि लोग अपने बुढ़े माता पिता को उनके जीवन काल में ही खिलाना पिलाना तो दुर, उनको अपने उपर बोझ समझ कर उन्हें घर से निष्कासित कर दे रहे हैं और कुछ तो उन्हें बृद्धाश्रम में छोड़ आ रहे हैं। ऐसे लोग जब उनके मरने के बाद दूनिया को दिखाने के लिए उनका श्राद्ध कर्म और पिंडदान आदि करते हैं तो यह हास्यास्पद लगता है। मनुष्य तो मनुष्य, यहाँ तक की जंतु जानवर और पशु पक्षी भी हमारे जीवन का अंश हैं। तभी तो श्राद्ध कर्म और पिंडदान आदि में उनके लिए भोजन का अंश निकाला जाता है। अब वो भी लोगों के इस घिनौना व्यवहार को देख कर आश्चर्य चकित हैं कि आज कल मनुष्य कैसे निर्दयी हो गये हैं कि लोग अपने माता पिता को बोझ समझ उन्हें भोजन नहीं देते हैं और घर से निकाल देते हैं।
इस संदर्भ में इस साल के पितृपक्ष के आरंभ होने से पहले कौओं ने अपने बिरादरी की एक अहम पंचायत बुलायी और विस्तृत चर्चा कर उसमें उन्होंने सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया है कि आज का मानव जब इतना निर्दयी हो गया है कि अपने जीवित माता पिता को भोजन नहीं दे रहा है, तो हमलोग उनके द्वारा अपने पूर्वजों के श्राद्ध कर्म और पिंडदान आदि में हमारे लिए निकाले गए अंश को ग्रहण नहीं करेंगे और नहीं खायेंगे। उन्होंने अपने इस निर्णय पर भविष्य में तब तक कायम रहने को कहा है, जब तक मनुष्य अपने व्यवहार में सुधार नहीं करता है और अपने जीवित माता पिता को अपने साथ रख कर उन्हें भोजन और सम्मान देना नहीं सिख लेता है। 

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