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जियालाल आर्य की कहानियाँ मन को कुरेदती और गुदगुदाती भी है:-डा अनिल सुलभ

जियालाल आर्य की कहानियाँ मन को कुरेदती और गुदगुदाती भी है:-डा अनिल सुलभ

  • साहित्य सम्मेलन में कहानी संग्रह 'नदी रुकती नहीं' का हुआ लोकार्पण, हुई लघुकथा-गोष्ठी

पटना, २८ अप्रैल। वरिष्ठ लेखक जियालाल आर्य की कहानियाँ मन को कुरेदती और गुदगुदाती भी है। क़िस्सा-गोई में एक विशेष स्थान बना चुके आर्य जी पाठकों पर गहरा प्रभाव छोड़ते हैं। पढ़ना आरंभ कर चुके पाठक को ये अंत तक पढ़ने के लिए विवश करते हैं। एक सफल कहानी की पहली विशेषता यही है कि वह पाठकों के मन में अंत तक कौतूहल बनाए रखे।
यह बातें रविवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, बिहार के पूर्व गृह सचिव और वरिष्ठ लेखक जियालाल आर्य के कहानी-संग्रह 'नदी रुकती नहीं' के लोकार्पण हेतु आयोजित समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन-अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, लोकार्पित पुस्तक के लेखक एक संवेदनशील और गहन सामाजिक-दृष्टि रखने वाले रचनाकार हैं। संग्रह की कहानियों में लेखक की लोक-चेतना और जीवन के अनेक मूल्यों को अभिव्यक्ति मिली है।
पुस्तक का लोकार्पण करते हुए, पटना उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश और राज्य उपभोक्ता आयोग, बिहार के अध्यक्ष न्यायमूर्ति संजय कुमार ने कहा कि पुस्तक के लेखक जियालाल आर्य ने जितनी निष्ठा से प्रशासनिक सेवा की उसी निष्ठा से वे साहित्य की बड़ी सेवा कर रहे हैं। इनके अनुभव और अनुभूतियों का प्रभाव-क्षेत्र बहुत बड़ा रहा है, जो इनके साहित्य में दिखायी देता है।
बिहार सरकार के पूर्व विशेष सचिव और साहित्यकार डा उपेंद्रनाथ पाण्डेय ने कहा कि सृजन की विविध विधाओं में कहानी-लेखन का कार्य अधिक कठिन है। शास्त्रों में कहा गया है कि एक कथा-लेखक को बहुत ज्ञानी होना चाहिए। उसे शास्त्रों का गहरा अध्ययन होना चाहिए। आर्य जी एक कथाकार के दायित्त्व को पूरी निष्ठा से पूरा करते हैं।
पुस्तक के लेखक जियालाल आर्य ने कृतज्ञता-ज्ञापित करते हुए कहा कि, मैंने अपनी कहानियों की कथा-वस्तु ही नहीं, कथा के पात्रों को भी अपने गाँव और ग्राम्य-जीवन से चुने हैं। सभी कहानियाँ सत्य-कथाओं पर आधारित हैं, इसलिए सजीव हैं और पाठकों की अपनी कहानी सी लगती हैं। सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, डा मधु वर्मा तथा ओम् प्रकाश पाण्डेय ने भी अपने विचार व्यक्त किए ।
इस अवसर पर, आयोजित लघुकथा-गोष्ठी में, डा शंकर प्रसाद ने 'अभिज्ञान' शीर्षक से, डा पुष्पा जमुआर ने 'रिटायरमेंट', डा मनोज गोवर्द्धनपुरी ने 'फ़ेसबुक', अनीता मिश्र 'सिद्धि' ने 'कोड-नम्बर', जय प्रकाश पुजारी ने, 'अपना घर', डा पूनम आनन्द ने 'दाँव', तथा नरेंद्र कुमार ने 'सम्मान-सुख' शीर्षक से अपनी लघुकथा का पाठ किया। मंच का संचालन ब्रह्मानन्द पाण्डेय ने तथा धन्यवाद ज्ञापन सम्मेलन के प्रबंध मंत्री कृष्ण रंजन सिंह ने किया। सम्मेलन के अर्थ मंत्री प्रो सुशील कुमार झा, ई अशोक कुमार, डा नागेश्वर प्रसाद यादव, कवि आरपी घायल, डा सुमेधा पाठक, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, डा प्रतिभा रानी, सागरिका राय, आराधना प्रसाद, अम्बरीष कांत, डा अर्चना त्रिपाठी, शशि भूषण कुमार, ई आनन्द किशोर मिश्र, शमा कौसर 'शमा', मधुरानी लाल, राजेश भट्ट, डा अमरनाथ प्रसाद, अरुण कुमार श्रीवास्तव, आनन्द मोहन झा, डा कुंदन लोहानी, चंदा मिश्र, डा पंकज प्रियम, डा हुमायूँ अख़्तर, शंकर कैमूरी, शुभ चंद्र सिन्हा, डा पंकज पाण्डेय, रेखा भारती मिश्र, ज्ञानेश्वर शर्मा, अभय सिन्हा समेत बड़ी संख्या में सुधीजन और साहित्यकार उपस्थित थे।
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