जिन्दगी की राहों में, एक और मुकाम पाया है,
सेवानिवृत हो गया हूँ, सुखद सुकून पाया है।थी बन्दिशें कुछ उडान में, रूकावटें थी राहों में,
आज उडने के लिये फिर, विस्तृत गगन पाया है।
था हौसला मुझमें बहुत, हारी नही हिम्मत कभी,
हौसलों का इतिहास लिखना, हौसला फिर पाया है।
बिसरा गये थे कुछ संगी साथी, जिंदगी की दौड.में,
रिश्तों को संवारने का, फिर से अवसर पाया है।
खो गया था बचपना, यौवन भी जाने कब गया,
बुढापे में बचपन जीने का, फिर से मौका पाया है।
हूँ युवा मन से अभी, तन पर भी प्रभु कृपा बनी,
बच्चों के संग जीने, खुशियाँ मनाने का अवसर पाया है।
थे अनेकों साथ मेरे, थी शुभकामनायें संबल सदा,
कृतज्ञता प्रकट करने का अवसर, 'कीर्ति' ने पाया है।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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