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बातें

बातें

कुछ बातें सीधी होती हैं
कुछ उल्टी सीधी होती हैं।
कुछ दायें बायें भी होती,
कुछ ऊपर नीचे होती हैं।
बातें हैं, बातों में क्या-क्या,
छिपा हुआ क्या अर्थ यहाँ?
सोच सोच कर अर्थ बात का,
बातों की फिर बातें होती हैं।
कभी कभी तो बात बिगड़ती,
कुछ बेबात की बातों से ही।
कभी बिगड़ती बात सँभलती,
ज्ञानी लोगों की बातों से ही।
कभी बात मुख भीतर होती,
बाहर आने को आतुर होती।
कभी लज्जा सम्मान किसी का,
कुछ बातें भीतर ही भीतर घुटती।
कैसे मन की बात सुनायें,
जाने वह क्या क्या सोचेंगे।
रातों में यह सोचा करते,
कल वह बात उन्हें बोलेंगें।
बात लबों तक जब जब आयी,
होठों पर खामोशी छाई,
मौन मुखर, नैन झुक गये,
दिल की बात जुबां न आयी।

अ कीर्ति वर्द्धन
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