कतहुँ अंजोर होई, कतहुँ अंधार होई।
कतहुँ केहू हंसत होई, कतहुँ केहू रोवत होई।।आपन आपन भाग लेके, सब लोग आवेला।
बंदरी के नाच इहे, भाग हीं नचावेला।।
लेखा जोखा करनी के, बिधाता सब करत बाड़े।
जइसन बा करनी ओइसन, भाग उहे गढ़त बाड़े।।
दोसरा के सतइब त, फल ओइसन पइब।
जिनिगी नाहक दुखी होई, खुब पछतइब ।।
झूठ ओ मक्कारी से, सब लोग के सतावत बाड़।
जिनिगी नाहक दुखी होई, आपन सब बिगाड़त बाड़।।
अबही भी मौका बा, आपन करम तूं सुधार ल।
मन के मत दुखी कर, भविष्य के संवार ल।।
जय प्रकाश कुवंर
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