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03 सितम्बर कलश स्थापना - माँ शैल पुत्री की प्रथम पूजा होगी

03 सितम्बर कलश स्थापना - माँ शैल पुत्री की प्रथम पूजा होगी

दिव्य रश्मि के उपसम्पादक जितेन्द्र कुमार सिन्हा की कलम से |

शारदीय नवरात्र वृहस्पतिवार को कलश स्थापना और माँ शैल पुत्री की प्रथम पूजा से शुरू होगी। कलश स्थापना हमेशा पूजा घर के ईशान कोण में करना चाहिए। पंचांग के अनुसार, आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शारदीय नवरात्र शुरू होकर नवमी तिथि तक चलता है। आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की प्रपिदा तिथि यानि 03 अक्तूबर को कलश स्थापना के साथ शुरू होगा।

शारदीय नवरात्र के नौ दिन मैं माँ नवदुर्गा के नौ रूपों की पूजा होता है, जिसमें प्रतिपदा को माँ शैलपुत्री, दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी, तीसरे दिन माँ चंद्रघंटा, चौथे दिन माँ कुष्मांडा, पांचवे दिन माँ स्कंदमाता, छठे दिन माँ कात्यायनी, सातवें दिन माँ कालरात्रि, आठवें दिन माँ महागौरी और नौवें दिन माँ सिद्धिदात्री की अराधना की जाती है।

शैलपुत्री देवी दुर्गा के नौ रूप में पहले स्वरूप में जानी जाती हैं। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री के रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम 'शैलपुत्री' है। नवरात्र-पूजन में प्रथम दिन इनकी पूजा और उपासना की जाती है। इस दिन योगी अपने मन को 'मूलाधार' चक्र में स्थित करते हैं और यहीं से उनकी उपासना और योग साधना का प्रारंभ होता है।

एक बार प्रजापति दक्ष ने एक बहुत बड़ा यज्ञ किया। इस यज्ञ में प्रजापति दक्ष ने सारे देवताओं को अपना-अपना यज्ञ-भाग प्राप्त करने के लिए आमंत्रित किया था, लेकिन भगवान शंकर जी को आमंत्रित नहीं किया था। सती ने जब सुना कि उनके पिता एक अत्यंत विशाल यज्ञ का अनुष्ठान कर रहे हैं, तब वहाँ जाने के लिए उनका मन विकल हो उठा और उन्होंने अपनी यह इच्छा शंकर जी को बताई। सारी बातों पर विचार करने के बाद शंकर जी ने सती से कहा कि प्रजापति दक्ष किसी कारणवश हमसे रुष्ट हैं। अपने यज्ञ में उन्होंने सारे देवताओं को आमंत्रित किया है। उनके यज्ञ-भाग भी उन्हें समर्पित किए हैं, किन्तु हमें जान-बूझकर नहीं बुलाया है। कोई सूचना तक नहीं भेजी है। ऐसी स्थिति में तुम्हारा वहाँ जाना किसी प्रकार भी श्रेयस्कर नहीं होगा। शंकर जी के इस बात के बावजूद सती का पिता का यज्ञ देखने, वहाँ जाकर माता और बहनों से मिलने की, उनकी व्यग्रता कम नहीं हुई। उनका प्रबल आग्रह देखकर शंकर जी ने उन्हें वहाँ जाने की अनुमति दे दी। सती ने पिता के घर पहुँचकर देखा कि कोई भी उनसे आदर और प्रेम के साथ बातचीत नहीं कर रहा है। सारे लोग मुँह फेरे हुए हैं। केवल उनकी माता ने स्नेह से उन्हें गले लगाया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव भरे हुए थे। परिजनों के इस व्यवहार से उनके मन को बहुत तकलीफ पहुँचा। उन्होंने यह भी देखा कि वहाँ चतुर्दिक भगवान शंकर जी के प्रति तिरस्कार का भाव भरा हुआ है। दक्ष ने उनके प्रति कुछ अपमानजनक वचन भी कहे। यह सब देखकर सती का हृदय क्षोभ, ग्लानि और क्रोध से भर उठा। उन्होंने सोचा भगवान शंकर जी की बात न मान, यहाँ आकर मैंने बहुत बड़ी गलती की है। वे अपने पति भगवान शंकर जी के इस अपमान को सह न सकीं और उन्होंने अपने उस रूप को तत्क्षण वहीं योगाग्नि द्वारा जलाकर भस्म कर दिया। वज्रपात के समान इस दुःखद घटना को सुनकर शंकर जी ने क्रोध में अपने गणों को भेजकर दक्ष के उस यज्ञ का पूर्णतः विध्वंस करा दिया। सती ने योगाग्नि द्वारा अपने शरीर को भस्म कर, अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। शैलराज की पुत्री होने के करण सती 'शैलपुत्री' नाम से विख्यात हुई। इसलिए इस रूप को प्रथम दिन माँ शैलपुत्री की पुजा होती है।

नवरात्र में पाठ का प्रारम्भ प्रार्थना से करना चाहिए। उसके बाद दुर्गा सप्तशती किताब से सप्तश्लोकी दुर्गा, उसके बाद श्री दुर्गाष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम, दुर्गा द्वात्रि शतनाम माला, देव्याः कवचम्, अर्गला स्तोत्रम, किलकम, अथ तंत्रोक्त रात्रिसूक्तम, श्री देव्यर्थ शीर्षम का पाठ करने के बाद नवार्ण मंत्र का 108 बार यानि एक माला जप करने के उपरांत दुर्गा सप्तशती का एक-एक सम्पूर्ण पाठ करना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति से यह सम्भव नही तो निम्न प्रकार भी पाठ कर सकते है।

पहला दिन - प्रथम अध्याय
दूसरा दिन - दूसरा, तीसरा और चौथा अध्याय
तीसरा दिन - पाँचवाँ अध्याय
चौथा दिन - छठा और सातवां अध्याय
पाँचवा दिन - आठवां और नौवां अध्याय
छठा दिन - दसवां और ग्यारहवां अध्याय
सातवाँ दिन - बारहवाँ अध्याय
आठवां दिन - तेरहवां अध्याय
नौवाँ दिन - प्रधानिक रहस्य, वैकृतिक रहस्य एवं मूर्ति रहस्य ।

नवरात्र में भोजन के रूप में केवल गंगा जल और दूध का सेवन करना अति उत्तम माना जाता है, कागजी नींबू का भी प्रयोग किया जा सकता है। फलाहार पर रहना भी उत्तम माना जाता है। यदि फलाहार पर रहने में कठिनाई हो तो एक शाम अरवा भोजन में अरवा चावल, सेंधा नमक, चने की दाल, और घी से बनी सब्जी का उपयोग किया जाता है।

पहला दिन - प्रथम अध्याय

दूसरा दिन - दूसरा, तीसरा और चौथा अध्याय

तीसरा दिन - पाँचवाँ अध्याय

चौथा दिन - छठा और सातवां अध्याय

पाँचवा दिन - आठवां और नौवां अध्याय

छठा दिन - दसवां और ग्यारहवां अध्याय

सातवाँ दिन - बारहवाँ अध्याय

आठवां दिन - तेरहवां अध्याय

नौवाँ दिन - प्रधानिक रहस्य, वैकृतिक रहस्य एवं मूर्ति रहस्य ।

नवरात्रि में भोजन के रूप में केवल गंगा जल और दूध का सेवन करना अति उत्तम माना जाता है, कागजी नींबू का भी प्रयोग किया जा सकता है। फलाहार पर रहना भी उत्तम माना जाता है। यदि फलाहार पर रहने में कठिनाई हो तो एक शाम अरवा भोजन में अरवा चावल, सेंधा नमक, चने की दाल, और घी से बनी सब्जी का उपयोग किया जाता है।
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