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कपटी लोग

कपटी लोग

हितैषी जिन्हें समझता हूँ मैं,
उन्हीं के दिल में खटकता हूं मैं।
मदद को उनकी भटकता हूं मैं,
ना दुष्टता उनकी समझता हूँ मैं।

स्वार्थवश वो मित्रता करते,
मीठी बातों से मन को हरते।
काम निकलते शत्रुता वो करते,
मन को कटु वचन से कलुषित करते।

दूर रहें ऐसे लोगों से,
जो मतलब से हैं यारी करते,
झूठा अपनापन दिखाकर जो,
पीठ पीछे गद्दारी करते।

प्रेम स्नेह ना रहा दिल में,
स्वार्थ घृणा भरा है मन में।
दया का भाव रहा ना दिल में,
व्यभिचार का भाव भरा है मन में।

तजकर द्वेष - विद्वेष के भाव,
बनो परोपकारी तू ऐ मानव।
छोड़ कुसंस्कारों को ऐ दानव,
संस्कार अपनाकर बनो तू मानव।
⇒ सुरेन्द्र कुमार रंजन
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