उकेरे थे शब्द तेरी हथेली पर
जो रात के अन्धकार में मैंने,अरमानों की स्याही और
ख्वाहिशों की कलम से लिखे थे मैंने।
नजरें झुकाकर तुम्हारा सिमट जाना
मेरे आगोश में, देखा था मैंने,
महसूसती हो शब्दों को आज तक,
तेरे सानिध्य के हर पल को जिया है मैंने।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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