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नवरात्र में योगिनियों की पूजा करने का भी विधान है

नवरात्र में योगिनियों की पूजा करने का भी विधान है

दिव्य रश्मि के उपसम्पादक जितेन्द्र कुमार सिन्हा की कलम से |

शारदीय नवरात्र का शुभारंभ इस वर्ष 03 अक्तूबर से हो रहा है और कलश स्थापना 03 अक्तूबर को पूरे दिन में किसी भी समय किया जा सकता है, लेकिन जहां तक अमृत मुहूर्त का प्रश्न है तो वह समय प्रातः 5 बजकर 56 मिनट से 7 बजकर 20 मिनट तक तथा सर्वोत्तम अभिजीत मुहूर्त 11 बजकर 46 मिनट से 12 बजकर 33 मिनट तक विशेष फलदायक है। कलश स्थापना सदैव पूजा घर के ईशान कोण में करना चाहिए।


देवी भागवत पुराण के अनुसार मां दुर्गा इस वर्ष नवरात्र में उनका आगमन डोली की सवारी होगा और प्रस्थान चरणायुध (मुर्गे) पर होगा। जो शुभ फलदायक नहीं माना जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार जिस वर्ष माता का आगमन डोली पर होती है तो उस वर्ष महामारी फैलने का भय बना रहता हैं और प्रस्थान चरणायुध (मुर्गे) की सवारी होती है, ऐसी स्थित में देश में रोग, शोक बढ़ने और देश में आंतरिक बेचैनी बढ़ने का संकेत मिलता है।


इस वर्ष नवरात्र की अष्टमी तिथि जिसे दुर्गाष्टमी भी कहा जाता है जो 11 अक्टूबर को है। इस दिन मां के महागौरी रूप का पूजन किया जाता है। नवरात्र में अष्टमी-नवमी की संधि-पूजा को विशेष फलप्रद माना जाता है। अष्टमी 10 अक्टूबर को पूर्वाह्न 7.31 से शुरू होकर 11 अक्टूबर को पूर्वाह्न 6.52 तक रहेगा। महानवमी तिथि का मान 11 अक्टूबर को होगा।


03 अक्तूबर (गुरुवार) को प्रतिपदा तिथि 1.10 बजे रात तक, 04 अक्तूबर (शुक्रवार) को द्वतीया तिथि 3.10 बजे रात तक, 05 अक्तूबर (शनिवार) को तृतीया तिथि रातभर, 06 अक्तूबर (रविवार) को चतुर्थी तिथि रातभर, 07 अक्तूबर (सोमवार) को चतुर्थी तिथि प्रातः 6.15 बजे तक, 08 अक्तूबर (मंगलवार) को पंचमी तिथि पूर्वाह्न रात्रि 7.10 बजे तक, 09 अक्तूबर (बुधवार) को षष्ठी तिथि पूर्वाह्न 7.35 बजे तक, 10 अक्तूबर (गुरुवार) को सप्तमी तिथि 7.30 बजे तक, 11 अक्तूबर (शुक्रवार) को अष्टमी तिथि प्रातः 6.52 बजे तक, तदोपरांत नवमी तिथि और 12 अक्तूबर (शनिवार) को विजयादशमी होगा।


नवरात्र और पितृपक्ष की संधिकाल को “महालया” कहा जाता है । इस समय मां दुर्गा का घर में आगमन और पितरों को जल अर्पित कर अपने लोक में रहने के लिए विदाई किया जाता है। मान्यता है कि अमावस्या की सुबह पितर पृथ्वी लोक से विदाई लेते हैं और शाम को मां दुर्गा अपनी योगनियों और पुत्र गणेश और कार्तिकेय के साथ पृथ्वी पर आती है। यह भी मान्यता है कि पृथ्वी लोक मां पार्वती का मायका है।


मां दुर्गा के नौ रूपों में मां शैलपुत्री से स्वाभिमानी बनने की प्रेरणा मिलती है, मां ब्रह्मचारिणी का रूप तपस्या का प्रतीक है, मां चन्द्रघण्टा से संदेश मिलता है कि संसार में सदा प्रसन्न होकर जीवन यापन करना चाहिए, मां कूष्माण्डा का स्वरूप हमें संसार में स्त्री का महत्व समझाता है, मां स्कंद माता का रूप हमें बताता है कि स्त्री हो या पुरुष, हर कोई ज्ञान प्राप्त करने का अधिकारी है, मां कात्यायनी का रूप घर-परिवार में बेटी की महत्ता को बताता है, मां काल रात्रि का रूप हमें स्त्री के भीतर विद्यमान अपार शक्ति का भान कराता है, मां महागौरी का रूप हमें हर परिस्थिति में संयमित रहने की सीख देता है, मां सिद्धिदात्री यानि हर सिद्धि को देने वाली हैं, स्त्रियों में भी यह गुण विद्यमान होता है।


नवरात्र में योगिनियों की पूजा करने का भी विधान है। पुराणों के अनुसार, चौसठ योगिनियाँ होती है। सभी योगिनियों को आदिशक्ति माँ काली का अवतार माना गया है। किवदंती है कि घोर नामक दैत्य के साथ युद्ध करते समय योगिनियों का अवतार हुआ था और यह सभी माता पार्वती की सखियां हैं।


चौंसठ योगिनियों में (1) बहुरूप, (2) तारा, (3) नर्मदा, (4) यमुना, (5) शांति, (6) वारुणी (7) क्षेमंकरी, (8) ऐन्द्री, (9) वाराही, (10) रणवीरा, (11) वानर-मुखी, (12) वैष्णवी, (13) कालरात्रि, (14) वैद्यरूपा, (15) चर्चिका, (16) बेतली, (17) छिन्नमस्तिका, (18) वृषवाहन, (19) ज्वाला कामिनी, (20) घटवार, (21) कराकाली, (22) सरस्वती, (23) बिरूपा, (24) कौवेरी, (25) भलुका, (26) नारसिंही, (27) बिरजा, (28) विकतांना, (29) महालक्ष्मी, (30) कौमारी, (31) महामाया, (32) रति, (33) करकरी, (34) सर्पश्या, (35) यक्षिणी, (36) विनायकी, (37) विंध्यवासिनी, (38) वीर कुमारी, (39) माहेश्वरी, (40) अम्बिका, (41) कामिनी, (42) घटाबरी, ( 43) स्तुती, (44) काली, (45) उमा, (46) नारायणी, (47) समुद्र, (48) ब्रह्मिनी, (49) ज्वाला मुखी, (50) आग्नेयी, (51) अदिति, (52) चन्द्रकान्ति, (53) वायुवेगा, (54) चामुण्डा, (55) मूरति, (56) गंगा, (57) धूमावती, (58) गांधार, (59) सर्व मंगला, (60)अजिता, (61) सूर्यपुत्री (62) वायु वीणा, (63) अघोर और (64) भद्रकाली योगिनियाँ है।


नवरात्र में पाठ का प्रारम्भ प्रार्थना से करना चाहिए। उसके बाद दुर्गा सप्तशती किताब से सप्तश्लोकी दुर्गा, उसके बाद श्री दुर्गाष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रम, दुर्गा द्वात्रि शतनाम माला, देव्याः कवचम्, अर्गला स्तोत्रम, किलकम, अथ तंत्रोक्त रात्रिसूक्तम, श्री देव्यर्थ शीर्षम का पाठ करने के बाद नवार्ण मंत्र का 108 बार यानि एक माला जप करने के उपरांत दुर्गा सप्तशती का एक-एक सम्पूर्ण पाठ करना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति से यह सम्भव नही तो निम्न प्रकार भी पाठ कर सकते है।


पहला दिन - प्रथम अध्याय
दूसरा दिन - दूसरा, तीसरा और चौथा अध्याय
तीसरा दिन - पाँचवाँ अध्याय
चौथा दिन - छठा और सातवां अध्याय
पाँचवा दिन - आठवां और नौवां अध्याय
छठा दिन - दसवां और ग्यारहवां अध्याय
सातवाँ दिन - बारहवाँ अध्याय
आठवां दिन - तेरहवां अध्याय
नौवाँ दिन - प्रधानिक रहस्य, वैकृतिक रहस्य एवं मूर्ति रहस्य ।


नवरात्र में भोजन के रूप में केवल गंगा जल और दूध का सेवन करना अति उत्तम माना जाता है, कागजी नींबू का भी प्रयोग किया जा सकता है। फलाहार पर रहना भी उत्तम माना जाता है। यदि फलाहार पर रहने में कठिनाई हो तो एक शाम अरवा भोजन में अरवा चावल, सेंधा नमक, चने की दाल, और घी से बनी सब्जी का उपयोग किया जाता है।


नौ दिनों तक चलने वाले इस पर्व में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा आराधना की जाती है ! शास्त्रों में मां दुर्गा को शक्ति की देवी कहा गया है ! इसलिए इसे शक्ति की उपासना का पर्व भी कहा जाता है ! मान्यता है कि नवरात्र के व्रत रखने वालों को मां दुर्गा का आशीर्वाद मिलता है और उनके सभी संकट दूर हो जाते हैं। पूजा-अनुष्ठान पहला दिन प्रथम मां शैलपुत्री की पूजा, दूसरे दिन द्वितीया मां ब्रह्मचारिणी की पूजा, तीसरा दिन तृतीया मां चंद्रघंटा की पूजा, चौथा दिन चतुर्थी मां कुष्मांडा की पूजा, पांचवा दिन पंचमी मां स्कंदमाता की पूजा, छठा दिन षष्ठी मां कात्यायनी की पूजा, सातवां दिन सप्तमी मां कालरात्रि की पूजा, आठवां दिन अष्टमी दुर्गा महाअष्टमी की पूजा, नौवां दिन दुर्गा महानवमी मां सिद्धिदात्री की पूजा और दसवां दिन दुर्गा विसर्जन, विजयादशमी होगा।

कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त प्रतिपदा तिथि 03 सितम्बर को सुबह से देर रात तक, हस्त नक्षत्र शाम 03 बजकर 30 मिनट तक, शुभ योग मुहूर्त प्रातः 05 बजकर 45 मिनट से 12 बजे तक, चर मुहूर्त सुबह 10 बजकर 10 मिनट से 11 बजकर 38 मिनट तक, लाभ मुहूर्त दोपहर 11 बजकर 38 मिनट से 01 बजकर पाँच 07 मिनट तक, अमृत मुहूर्त दोपहर 01 बजकर 07 मिनट से 02 बजकर 35 मिनट तक, अभिजीत मुहूर्त दोपहर 11 बजकर 15 मिनट से 12 बजकर 02 मिनट तक और शुभ मुहूर्त शाम 04 बजकर 04 मिनट से 05 बजकर 33 मिनट तक है।
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