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आत्म - दीप जगे,, जगाये दीप का उत्सव।।

आत्म - दीप जगे,, जगाये दीप का उत्सव।।

डॉ रामकृष्ण मिश्र

अँधेरे के सघन वन में रोशनी का राग
छेडता है मधुरता से, ज्योतिमय संवाद।
मृणमयी काया सिरजती प्रीत का उत्सव।।


गगन के आँगन खिलेंगे तारकित नव फूल
और रजनी ओढ़ लेगी कृष्णवर्ण दुकूल।
क्षितिज की संवेदना के गीत का उत्सव।।


देहली शुभ द्वार चैत्य मुँडेर हँस जाए
हर गली संभााव्य जीवन मुस्कुरा जाए।
कठिनतम संघर्ष में हो जीत का उत्त्सव।।
रामकृष्ण
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