कभी सोंचा ही ना था
अपनी जरूरतों को पूरी कर,इस कदर बदल जाएंगे लोग,
यह तो कभी सोंचा ही ना था।
मेरे सुख चैन को छिनकर,
इस कदर तन्हा छोड़ जाएंगे लोग,
यह तो मुझे पता ही ना था।'
जीवन के अनमोल पलों को लूटकर,
इस कदर तड़पता छोड़ जाएंगे लोग,
इस बात का तो एहसास ही ना था।
मेरे विश्वास व भरोसे को तोड़कर,
इस कदर ठुकरा चले जाएंगे लोग,
इसका तो मुझे आभास ही ना था।
मेरे जीवन में अनगिनत काँटे बिछाकर ,
इस कदर रक्त रंजित कर जाएंगे लोग,
इस बात का तो विश्वास ही ना था।
सुरेन्द्र कुमार रंजन
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