अपने हुए सपने
अपना जिन्हें माना के सपने हो गए,देकर गहरे जख्म वे बेगाने हो गए।
जीवन के कीमती वक्त उन पर लुटा दिए ,
जीवन के सारे सुख उनको जुटा दिए।
नाज नखरें उनके पलकों पर उठा लिए,
गलतियाँ उनकी अपने सर पर उठा लिए।
मान - मर्यादा का कभी ख्याल न किया,
अपमान सहकर भी उन्हें खुशहाल न किया।
जीवन का हर प्रयास विफल ही रह गया ,
अकेला ही था बस अकेला ही रह गया।
सुरेन्द्र कुमार रंजन
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