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हम बाल सखे

हम बाल सखे

हम बाल सखे हम बाल सखे ‌,
हम भारत माॅं के लाल सखे ।
भारत में ही हैं जन्म लिए हम ,
भारत में हुआ प्रतिपाल सखे ।।
भारत में ही यह जीना मरना ,
भारत हेतु ही है जीना मरना ।
पूरा विश्व है प्रिय मित्र हमारा ,
मित्रों से हमें क्या यह लड़ना ।।
भारत के ही हम भाल सखे ,
दुश्मन हेतु हम हैं काल सखे ।
भारत रूपी वृक्ष के जड़ हम ,
नहीं वृक्ष के हम डाल सखे ।।
वृक्ष भी वह नहीं फेंके उखाड़ ,
उखाड़ने में हिल जाएगा हाड़ ।
चली हवा की झोंकें ये हल्की ,
मिल न पाएगा कहीं भी आड़ ।।
मित्रता हेतु हम हैं ढाल सखे ,
यहाॅं गले न कोई ये दाल सखे ।
मित्रों हेतु हम तो हैं हाल सखे ,
दुश्मन को करते बदहाल सखे ।।
मनु वंशज भरत का भारत ,
सभ्य शिष्ट न्याय का भारत ।
नहीं कभी लड़ता किसी से ,
नहीं करता कहीं है शरारत ।।
नहीं बिगड़ा कभी चाल सखे ,
हम रहते सदा निहाल सखे ।
हैं भारत के हृदय के टुकड़े ,
नहीं साजिश के जाल सखे ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )
बिहार ।

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