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हक़ीक़ी मुहब्बत का जिसपे नशा है

हक़ीक़ी मुहब्बत का जिसपे नशा है |

डॉ. मेधाव्रत शर्मा, डी•लिट•
(पूर्व यू.प्रोफेसर)
हक़ीक़ी मुहब्बत का जिसपे नशा है ,
दुनिया में सच्चा वही बादशा है ।
इंसानियत से जो सरशार कर दे,
वही तो नशा है ,वही तो नशा है।
श्रोता भी नासेह, वक्ता भी नासेह,
मजलिस है,महफिल है या कहकशाँ है।
साहब की झाड़ी-सी दाढ़ी गजब है,
झाड़ी में फासी दरिंदा बसा है ।
खुल खेल लो आज महफिल में, रिन्दो!
विषधर को समझे हो मधु की कशा है।
मरो डूब चुल्लू भर पानी में , शैताँ!
ईश्वर की,वहशत में,धुन दी दशा है ।
(बादशा =बादशाह का लघु रूप; नासेह =उपदेशक)
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