हमारी वेदना
बताता हूँ सभी को आज।इस दुनियां की परिभाषा।
जिसे सुनकर सभी जन।
बहुत हैरान हो जाते है।।
अगर मिल जाए वजह तो
बहुत मुस्कराते है हम सब।
किसी की हालत पर तब
नही करते हम कोई रहम।
उड़ते है खिल्ली तब हम
जब कोई मिल जाये दुश्मन।।
जमाना आज का देखो
किसी सगे का है नही।
मिले जिसको भी मौका
लूट लेता बनकर अपना।
इसी तरह से पहले भी
होता रहता था घरों में।
पर कुछ मर्यादों के कारण
नही कुछ कहते थे वो।।
पुराने समय का देखो
अगल अंदाज होता था।
सभी एक छत के नीचे
रहते थे हिल मिलकर।
टकराते थे तब भी वर्तन
हमारे संयुक्त परिवार में।
पर घर का मुखिया तब
संभाल लेते था सबको।।
जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई
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