पहला प्यार
नाजुक कली नाजों से पली थी,गंगा किनारे मुझे वो मिली थी।
ना जाने वह कैसी सुंदर घड़ी थी,
आंखें मेरी जब उससे लड़ी थी।
छई-मुई-सी बन पास मेरे खड़ी थी,
विस्मित नजरें मेरी उस पर ही गड़ी थी।
शर्म से उसकी नजरें जरा झुक -सी गई थी,
मेरे दिल की धड़कन भी रूक-सी गई थी।
मुस्करा कर जब आगे वह बढ़ने लगी,
तब धड़कन मेरे दिल की बढ़ने लगी ।
धीरे-धीरे बढ़ा प्यार का सिलसिला,
वह मुझको मिली और मैं उसको मिला।
सुरेन्द्र कुमार रंजन
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