नहीं चाहिए याचना का उपकार
जीवन भर का साथ नहीं,मर मिटने का अधिकार दे दो।
वेदना भरे लोक में प्रियतम,
मिथ्या सपनों को आकार दे दो।
चाह नहीं अमरत्व की,
अमर प्रेम को जीती हूँ।
तृषित हिय की वेदना को,
विरह रस में डुबोती हूँ।
निष्फल उन्मन जीवन को,
क्या दे सकोगे साथ का उपहार?
ओ अभिमानी!जाने दो तुम
नहीं चाहिए याचना का उपकार।
डॉ रीमा सिन्हा
लखनऊ (स्वरचित)
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