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चाहत के दर्पण में, तुमको देखेंगे,

चाहत के दर्पण में, तुमको देखेंगे,

नींद हमारी, पर ख़्वाब तुम्हारे देखेंगे।
खुद से ज़्यादा बात तुम्हारी ही होंगी,
भरी दोपहरी, हम रात चाँदनी देखेंगे।


हर सूँ तेरा ही चेहरा आँखों के सम्मुख,
दर्पण में भी रूप तुम्हारा ही देखेंगे।
देखूँ जो खुद का चेहरा, तुम दिखती हो,
चाँद सितारों नील गगन में तुमको देखेंगे।

डॉ अ कीर्ति वर्द्धन
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