शरद पूनिया में नहाऊँ
ज्योतींद्र मिश्रशरद पूनिया में नहाऊँ
खिरिया खाऊं, पनियां पीऊं
अमृत बरसे ,अंतर सरसे
हिरदय हरसे , जैसे तैसे
धवल चांदनी की बाहों में
तनहा तनहा जीवन तरसे
मूक बधिर सा अपलक
तुम्हें निहारूं या जाऊं?
उत्तर दक्षिण पूरब पश्चिम
कोना कोना सूना सूना
तुम जो उतरे निर्जन वन में
तिमिर ताप बढ़ गया चौगुन्ना
कौन सुनेगा कोलाहल में
किसको गीत सुनाऊं ?
शरद पूनिया में नहाऊं
खिरिया खाऊं , पनियाँ पीऊं?
ज्योतींद्र मिश्र
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